________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ताश्च सुरश्रेष्ठ कुंकुमाताः सुशोभिताः // मया निवेदिता त्या गृहाण परमेश्वर // 1 // " मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुक गणपतये नमः अक्षतान्समर्पयामि // " सर्वांगुलीभिर्दद्यात् इत्यक्षतान् // 20 // “माल्यादीनि मुगंधीनि मालत्यादीनि वै प्रभो // मयानीतानि पुष्पाणि गृहाण परमेश्वर // 1 // " मूलं पठित्वा ॐ भर्भुवः स्वः अमुकगणपतये नमः रक्तपुष्पं समर्पयामि // तर्जन्या। | बंगुष्ठमूललग्ने पुष्पमुद्रा इति पुष्पम् // 21 // एवं पुष्पांतं पूजयित्वा प्रयोगोतावरणपूजां च कृत्वा धपादिपूजनं कुर्यात // // अथ धूपादिपूजाप्रयोगः // फडिति धूपपात्रं संप्रोक्ष्य नम इति गंधपुष्पाभ्यां संपूज्य पुरतो निधाय रं इति वह्निबीजेन उपरि अग्निं| संस्थाप्य तदुपरि दशांगं दत्वा घंटा च नादयन् // "ॐ वनस्पतिरसोद्भतो गंथाढयो गन्ध उत्तमः // आग्रेयः सर्वदेवानां धपोऽयं प्रतिगृह्य ताम् // 1 // " मलं पठित्वा ॐ भर्भुवः स्वः अमुकगणपतये नमः धूपं समर्पयामि // इति पठित्वा देवस्य वामभागे धूपपात्रं संस्थाप्य | तर्जनीमूलयोरंगुष्ठयोगो धूपमुद्रा तां प्रदर्शयेत् // इति धपम् // 22 // ततो दीपपात्रं गोघृतेनापूर्य वर्णाक्षरतंतुभिर्वति निक्षिप्य प्रणबेन | प्रज्याल्य घंटा बादयन् मंत्रं पठेत् // "ॐ सुप्रकाशो महादीपः सर्वतस्तिमिरापहः॥ स बाह्यात्यंतरं ज्योतिर्दापोयं प्रतिगृह्यताम् // " मूलं पठित्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अमुकगणपतये नमः दीपं समर्पयामि // इति पठित्वा देवस्य दक्षिणभागे निधाय मध्यमे अंगुष्ठलग्ने दीपमुद्रा तां प्रदर्शयेत् // इति दीपम् // 23 // अथ नैवेद्यम् // दे बस्याये जलेन चतुरस्र मंडलं कत्या स्वर्गादिनिर्मितं भोजनपात्रं संस्थाप्य तन्म ध्ये मोदकं गुडमिश्रितपायसं वा निधाय ॐ यं इति वायबीजन द्वादशवाराभिमंत्रितार्घजलेन संप्रोक्ष्य मलेन संवीक्ष्य अधोमुखदक्षिण 1 पुष्पं पचं फलं देवे न च दद्यादधोमुखम् // पुष्पांजली न तद्दोषस्तथा पर्युषितस्य च // For Private And Personal Use Only