________________ Shri Maharan Aradhana Kendra www.bath.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir // 352 // अथ कलिसिद्धिप्रदा मंत्राः // ( मंत्रमहोदधौ ) सिद्धिप्रदा कलियुगे ये मंत्रास्तान्वदाम्यतः॥व्यर्ण एकाक्षरोऽनुष्टुप् त्रिवि धो नरकेसरी // 353 // एकाक्षरोर्जुनोनुष्टुब् विविधस्तुरगाननः // चिंतामणिः क्षेत्रपालो भैरवो यक्षनायकः // 354 // गोपालो गजवक्रश्च चेटका यक्षिणी तथा // मातंगी सुंदरी श्यामा तारा कर्णपिशाचिनी // 355 // शब>कजटा वर्मा काली नीलसर स्वती // त्रिपुरा कालरात्रिश्च कलाविष्टप्रदा इमे // 356 // कलौ चतुर्वर्णोपयोगि मंत्राः // अघोरा दक्षिणामूर्तिरुमा माहेश्वरो मनुः हयग्रीवो बराहश्च लक्ष्मीनारायणस्तथा // 357 // प्रणवाद्याश्चतुर्वर्णा वह्नमत्रास्तथा खेः // प्रणवायो गणपतिर्हरिद्रागणनायकः // 358 // सौराष्ट्रक्षरमंत्रश्च तथा रामषडक्षरः // मंत्रराजो ध्रुवादिश्च प्रणवो वैदिको मनुः // 359 // वर्णत्रयाय दातव्या एते शूद्राय नो बुधैः // सुदर्शनं पाशुपतमाग्नेयास्त्रं नृकेसरी // वर्णद्वयाय दातव्या नान्यवर्ण कदाचन // 360 // छिन्नमस्ता च मातंगी त्रिपुरा कालिका शिवः // लघुश्यामा कालरात्रिर्गोपालो जानकीपतिः // 361 // उग्रतारा भैरवश्च देया वर्णचतुष्टये // मृगीदृशी विशेषेण मंत्रा ये ते सुसिद्धिदाः // 362 // ब्राह्मणाः क्षत्रिया वैश्याः शूद्रा नार्याधिकारिणः // श्रद्धावतो देवगुरुद्विजपूजासु सर्व था // 363 // मायां कामं श्रियं वाचं प्रदद्यान्मुखजन्मने // मायामृते बाहुजेोय ऊरुजेन्यः श्रियं गिरम् // 364 // वाणीबीजं तु शुद्रेश्योन्येभ्यो धर्म वषण्नमः // 365 // ( कुलार्णवे ) दासस्य शिवभक्तस्य हितप्रियकरस्य च // शुद्धस्यापि प्रदातव्यं || नमोतं प्रणवं विना // 366 // विना हि प्रणव मन्त्रः स्त्रीशूद्राणां प्रकीर्तितः॥ प्रणवेन समायुक्तास्तन्मंत्राश्च विषोपमाः // 367 // (आग मेपि) स्वाहाप्रणवसंयुक्त मंत्रं शूद्रे ददेद्विजः॥ शूद्रश्चांडालतामेति विप्रः शूद्रत्वमेव हि ॥३६८॥अथ मंत्राणां पुंस्त्रीनपुंसकविचारः॥(शरदा // For Private And Personal use only