________________ Shri Mahavirian Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri @yanmandir म० मं० को शमितं स्थानं नद्यादौ स्वेच्छया मितम् // नगरादावथ केशं कोशयुग्ममथापि वा आहारादिविहारार्थं तावती भूमिमाक्रमेत्॥ ३०९ख०१ (एकलिंगलक्षणं फेत्कारिणीतंत्रे) पंचक्रोशांतरे यत्र न लिगान्तरमीक्ष्यते तदेकलिंगमाख्यातं तत्र सिद्धिरनुत्तमा // 105 // तरं० 1 (श्मशानलक्षणं फेत्कारिणोतंत्रे )दह्यते व्यसवो यत्र शवकीलकसंकुले // गृध्रगोमायुकाकाद्यैर्मासलुग्धैर्यदावृतम् // तच्छ्यशानमिति ख्यातपिशाचगणसेवितम् // 106 // (चितालक्षणम् ) असंस्कृता चिता ग्राह्या न तु संस्कारसंयुता / / चांडालादिषु संप्राता केवलं शीघसिद्धिदा // 107 // (अत्राधिकारिणः) महाबलो महाबुद्धिर्महासाहसिकः शुचिः॥ महास्वच्छो दयावांश्च सर्व भूतहिते रतः॥ 108 // (शून्यागारलक्षणं त्रिशक्तिरत्ने ) काकादिनीडसंयुक्त किमिच्छत्रादिसंयुतम् / / नागरैरनिर्मुक्तं साध्व सोद्भवकारणम् ॥सौध संवृद्धघासौचं शून्यागारं तदुच्यते / / 109 // (चतुष्पथलक्षणं फेत्कारिणीतंत्रे) चतुर्णा च पथा यत्र संपा तो युगपद्धवेत / / तच्चतुष्पथमित्युक्तं रजन्यामिष्टदायकम् // 10 // (मठलक्षणं कुलार्णवे) अल्पद्वारमरंध्रगत विवरं नात्युच्चनीचा यतं सम्यग्गोमयसांदलितममलं निःशेषजंतूज्झितम् / बाह्ये मंडपवेदिकूपरुचिरं प्राकारसंवेष्टितं प्रोक्तं योगमठस्य लक्षणमिदं सिद्ध ठायासिभिः।।१११॥(अथ दिग्निर्णयः)उपविश्यासने मंत्री प्राङ्मुखो वा युदङ्मुखः॥रात्राबुदङ्मुखैःकार्य देवकार्य सदेवहि // 32 // (महाभारते उद्योगपर्वणि ) मुपर्ण उवाच // अनुशिष्टोस्मि देवेन गालवायातियोगिना // बूहि कामं तु कां याति इष्टं प्रथमतो दिशम् / helm13 // पूर्वा वा दक्षिणां वाहमथवा पश्चिमां दिशम्।।उत्तरां वा विजश्रेष्ठ कुतो गच्छामि गालव // 114 // गालव उवाच // यस्यामुदयते पूर्व सर्वलोकप्रभावनः। सविता यत्र संध्यांच्या साध्यानां वर्तते तु यः॥बतद्वारं द्विजश्रेष्ठ दिवसस्य तथाध्वनः।।११५॥(शिव H4 // For Private And Personal use only