________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir (अथ यंत्रलेखनार्थे पात्रनिर्णयः) स्वर्णादिपात्रे संलिख्य मातृकायंत्रमुत्तमम् // काश्मीरचन्दनेनापि भस्मना वाथ सुव्रत // 253 // काश्मीरं शक्तिसंस्कारे चन्दनं वैष्णवे मनौ॥शैवे भस्म समाख्यातं मातृकायंत्रलेखने // 254 ॥(धूपादिसमर्पणाङ्गनिर्णयः रुद्रयामले ) निवेदयेत्पुरोभागे गंधं पुष्पं च भूषणम् // दीपं दक्षिणतो दद्यात्पुरतो वा न वा मतः // 255 // वामतस्तु तथा धूपमये वा न तु दक्षिणे // नैवेद्यं दक्षिणे भागे पुरतो वा न पृष्ठतः॥ धूपदीपौ सुभोज्यं च देवताये निवेदयेत् // 256 // (अथ गंधनिर्णयः) सर्वेषु गंधजा तेषु प्रशस्तो मलयोद्भवः // तस्मात्सर्वप्रयत्नेन दद्यान्मलयजं सदा // 257 // ( देवभेदेन गंधाः) कृष्णागुरुः सकर्पूरः सहितो मलया वः // वैष्णवप्रीतिदो गंधः कामाख्यायाञ्च भैरवे // 258 // कुंकुमागरुकस्तूरीचन्द्रभागैः समीकतैः // त्रिपुराप्रीतिदो गंधस्तथा चंड्याश्च शंभुना॥२५९॥ (देवभेदेन गंधाष्टकम् ) गंधाष्टकं तत्रिविधं शक्तिविष्णुशिवात्मकम्॥चंदनागुरुकर्पूरचोरकुंकुमरोचनाः॥जटामांसीकपि / युताः शक्तेर्गधाष्टकं विदुः // 260 // चन्दनागुरुह्रीवेरकुष्ठकुंकुमसेव्यकाः॥ जटामांसीमुरमिति विष्णोर्गंधाष्टकं विदुः // 261 // चं दनागुरुकर्पूरतमालजलकुंकुमम् // कुशीतं कुष्टसंयुक्तं शैवं गंधाष्टकं विदुः // 262 // (गंधार्पणे अंगुलीविचारः) अनामिक्या च देवस्य ऋषीणां च तथैव च // गंधानुलेपनं कार्य प्रयत्नेन विशेषतः // 263 // पितॄणामर्पयेद्धं तर्जन्या च सदैव हि // तथैव मध्यमांगुल्या धार्य गंध स्वयं बुधैः॥२६४॥अथ फलपुष्पनिर्णयः॥( मंत्रमहोदधौ) श्वेतं पीतं हरेरिष्टं रक्तं रविगणेशयोः // अक्षतानधत्तूरी विष्णौ नै वार्पयेत्सुधीः॥२६५॥ बंधूक केतकी कुंदं केसरं कुटजं जपाम् // शंकरे नार्पयेद्विद्वान्मालतीं यूथिकामपि // 266 // शक्तो दूर्वार्कमंदा रान्मालूरं तगरं रखौ॥ विनायके तु तुलसीं नार्पयेज्जातुचिबुधः // 267 // (नाने विहिते पुष्पस्पर्शे दोषः लघुहारीतः) स्नानं कृत्वा च ये For Private And Personal Use Only