________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir में मचा राज्यदं राज्यकामानां रोगिणां सर्वरोगनुत् // बंध्यानां मुतदं चाशु सर्वश्रेष्टफलप्रदम् // 191 // अस्वग्रामविषध्वंसि ग्रहपीडाविना पू० खं० 1 1186 // शनम् // मांगल्यं पुण्यमायुष्यं श्रवणात्पठनाजपात // 192 // सदस्यखिलावेदाः सांगा मंत्राश्च कोटिशः // पुराणशास्त्रं स्मृतयः वि० सं० पठिताः पाठितास्तथा // 193 // जप्त्वास्य श्लोकं श्लोका पादं वा पठतः प्रिये // नित्यं सिद्ध्यति सर्वेषामचिरात्किमुतोऽखिलम्त रं० 7 // 194 // प्राणेन सदृशं सद्यः प्रत्यहं सर्वकर्मसु // इदं भद्रे त्वया गोप्यं पाठयं स्वार्थेकसिद्धये // 195 // नावैष्णवाय दातव्यं विकल्पोपहतात्मने // भक्तिश्रद्धाविहीनाय विष्णुसामान्यदर्शिने // 19.6 // देयं पुत्राय शिष्याय शुद्धाय हितकाम्यया // मत्प्रसादाहते नेदं यहीष्यंत्यल्पमेधसः // 397 // कलौ सद्यः फलं कल्पग्राममेष्यति नारद // लोकानां भाग्यहीनानां येन दुःखं विनश्यति॥१९८॥ क्षेत्रेषु वैष्णवेष्वेतदाऱ्यावर्ते भविष्यति // नास्ति विष्णोः परं सत्यं नास्ति विष्णोः परं पदम् // 199 // नास्ति विष्णोः परं ज्ञानं नास्ति मोक्षो ह्यवैष्णवः // नास्ति विष्णोः परो मंत्रो नास्ति विष्णोः परं तपः // 200 // नास्ति विष्णोः परं ध्यानं नास्ति मंत्रो वैष्णवः // किं तस्य बहुभिर्मनैः किं जपैदुबिस्तरैः॥२०१॥ वाजपेयसहस्रः किं भक्तिर्यस्य जनाईने // सर्वतीर्थमयो विष्णुः सर्वशास्त्रमयः प्रभुः // 202 // सर्वक्रतुमयो विष्णुः सत्यं सत्यं वदाम्यहम् // आब्रह्मसारसर्वस्वं सर्वमेतन्मयोदितम् // 203 // श्रीपार्वत्युवाच // धन्यासम्यनुगृहीतास्मि कृतार्थास्मि जगद्गुरो // यन्मयेदं श्रुतं स्तोत्रं त्वद्रहस्यं सुदुर्लभम् // 204 // अहो बत महा त्कष्टं समस्तसुखदे हरौ // विद्यमानेऽपि सर्वेशे मूढाः क्लिश्यंति संसृतौ // 205 // यमुद्दिश्य सदा नाथो महेशोपि दिगंबरः॥ जटिलो।" भस्मलिप्ताङ्गस्तपस्वी वीक्षितो जनैः॥२०६॥ अतोऽधिको न देवोस्ति लक्ष्मीकांतान्मधुद्विषः // यत्नत्वं चिंत्यते नित्यं त्वया योगीश्वरेण For Private And Personal Use Only