________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदाय वेदान्सकलान्समुद्रान्निहत्य शंखासुरमत्युदयम् // दत्ताः पुरा येन पितामहाय विष्णुं तमायं भज मत्स्यरूपम्॥ 1 // दिव्यामृ / तार्थ मथिते महाब्धौ देवासुरैर्वामुकिमन्दराभ्याम् // भूमर्महावेगविवर्णितायास्तं कूर्ममाधारगतं स्मरामि // 2 // समुद्रकांची सरिदुत्तरी या वसुंधरा मेरुकिरीटभारा // दंष्ट्राग्रतो येन समुद्धृता भूस्तमादिकोलं शरणं प्रपद्ये // 3 // भक्तातिभंगक्षमयाधिपायस्तंभां। तरालादुदितो नृसिंहः // रिपुं सुराणां निशितैनखायैर्विदारयंतं न च विस्मरामि // 4 // चतुस्समुद्राभरणा धरित्री न्यासाय नालं चरणस्य यस्य // एकस्य नान्यस्य पदं सुराणां त्रिविक्रम सर्वगतं नमामि // 5 // त्रिःसप्तकत्यो नृपतीन्निहत्य यस्त, पणं रक्तमयं पितृत्यः // चकार दोर्दण्डबलेन सम्यक् तमादिशूरं प्रणमामि रामम् // 6 // कुले रघूणां समवाप्य जन्म| विधाय सेतुं जलधेर्जलांतः // लंकेश्वरं यः शमयांचकार सीतापतिं तं प्रणमामि भक्त्या // 7 // हलेन मर्यानमुरान्निकृष्य चकार चूर्ण मुसलपहारैः // यः कृष्णमासाद्य बलं बलीयान् भक्त्या जे तं बलभद्ररामम् // 8 // पुरा सुराणामसु राविजेतुं संभावयञ्छीवरचिह्नवेषम् // चकार यः शास्त्रममोपकल्पं तं मूलभूतं प्रणतोस्मि बुद्धम् // 9 // कल्पावसाने निखिलैः मुरैः / स्वैः संघट्टयामास निमेषमात्रात् // यस्तेजसा स्वेन ददाह भीमो विष्ण्वात्मकं तं तुरगं भजामः // 10 // शंख सुचक्र मुगदां सरोज दोभिर्दधानं गरुडाधिरुढम् // श्रीवत्सचिह्न जगदादिमूलं तमालनीलं हृदि विष्णुमीडे // 17 // श्रीराम्बुधौ शेषविशेषतल्पे Kaशयानमंतःस्मितशोभि वक्रम् // उत्फुल्लनेत्राम्बुजमंबुदाभमायं श्रुतीनामसकत्स्मरामि // 12 // प्रीणयेदनया स्तुत्या जगन्नाथं जगन्म यम् // धर्मार्थकाममोक्षाणामाप्तये पुरुषोत्तमम् // 13 // " इति श्रीविष्णुस्तोत्रं समाप्तम् / / अथ विष्णोरष्टोत्तरशतनामस्तोत्रप्रारंभः / For Private And Personal Use Only