________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra warw.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir मंत्रेण वारिणा सिंचन्मंत्रेण तर्पणं स्मृतम् // 464 // (दीपनगोपनमाह) परमापरमायोगो गोपनदीपनमुच्यते // जप्यमानस्य मंत्रस्य गोपनं त्वप्रकाशनम् // 465 // संस्कारा दश तेप्रोक्ताः सर्वतंत्रेषु गोपिताः॥ यान् कृत्वा संप्रदायेन मंत्री वांछितमश्नुते // 466 // तरं०१ तांबूले भूर्जपत्रे वा लिखित्वा च कर्तव्याः // ( अथ शंकरोक्ताः सप्त उपायाः) भामणं बोधनं वश्यं पीडनं पोषशोषणे // दहनांतं क्रमात कुर्यात्ततः सिद्धो भवेद्धवम् // 467 // त्रामणं वायुबजिन प्रथम क्रमयोगतः॥ तन्मत्रं यंत्रमालिख्य सिक्तकर्पूरचन्दनैः // 468 // उशीरचन्दनाभ्यां तु यंत्रं संपुटमालिखेत् // पूजनाजपनाद्धोमाद्धामितः सिद्धिदो भवेत् // 469 // नामितो यदि नो सिद्धो बोधनं तस्य कारयेत् // सारस्वतेन बीजेन संपुटीकत्य संजपेत् // 470 // एवं रुद्धो भवेत्सिद्धो न चेदेतद्वशी कुरु // अलक्तं चन्दन कुष्ठं हारिद्रा मादनं शिला // 471 // एतस्तु यंत्रमालिख्य भूर्जपत्रे सुशोभने // धृत्वा कंठे भवेत सिद्धः पीडनं तस्य कारयेत् // 472 // अधरोनरयोगेन पदानि परिजाप्य वै // ध्यायेच देवतां तद्वदधरोत्तररूपिणीम् // 473 // विद्यामांदित्यदुग्धेन लिखित्वाक्रम्य चांघिणा // तथाभूतेन मंत्रेण होमः कार्यों दिनेदिने // 474 // पीडितो लज्जयाविष्टः सिद्धिः स्यादथ पोषयेत् // बालायां त्रितयं बीजमाद्यते तस्य योजयेत् // 475 // गोक्षीरमधुनालिख्य विद्यां पाणौ विधारयेत् // पोषितोयं भवेत् सिद्धो न चेत्कुर्वीत शोषणम् // 476 // दात्यां च वायबीजाभ्यां मंत्रं कुर्याद्विदर्भितम् // एषा विद्या गले धार्या लिखित्वा वरभस्मना // 477 // शोभितो न च / सिद्धयेच्च दहनीयोनिचीजतः // आग्नेयेन तु बीजेन मंत्रस्यैकैकमक्षरम् // 478 // आयंतमध ऊर्द्धं च योजयेद्दाहकर्मणि|ब्रह्मवृक्षस्या 1 सारस्वतबीजम् ऐं / 2 आदित्योऽर्कः / 3 ह्रीं / 4 ऐं क्लीं सौः / 1 // 17 // For Private And Personal use only