________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir पू० ख०१ मि तं० तर० 11 मं० म० // अथ मिश्रस्तरंगप्रारंभः॥ तत्रादौ क्षेत्रपालमंत्रप्रयोगः॥मंत्रो यथा-"ॐ शं क्षेत्रपालाय नमः” इति नवाक्षरो मंत्रः॥अस्य विधानम्॥ // 28 // अस्य क्षेत्रपालमंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः। गायत्री छंदः / क्षेत्रपालो देवता। क्षं बीजम् / लः शक्तिः / सर्वेष्टसिद्धये जपे विनियोगः॥ ॐ ब्रह्म ऋषये नमः शिरसि // 3 // ॐ गायत्रीछंदसे नमः मुखे // 2 // ॐ क्षेत्रपालदेवतायै नमः हृदि // 3 // ॐ शंबीजाय नमः गुह्ये॥४॥ ॐलः शक्तये नमः / पादयोः ॥५॥ॐ विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे // 6 // इति ऋष्यादिन्यासः // ॐ क्षां अंगुष्ठाभ्यां नमः // 1 // ||ॐ क्षीं तर्जनीभ्यां नमः // 2 // ॐझं मध्यमाश्यां नमः // 3 // ॐ अनामिकाभ्यां नमः // 4 // ॐ क्षौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः // 5 // ॐ क्षः करतलकरपृष्ठात्यां नमः॥ 6 // इति करन्यासः॥ ॐ शां हृदयाय नमः // 3 // ॐ क्षी शिरसे स्वाहा // 2 // ॐ शं शिखायै वषट् // 3 // ॐ ई कवचाय हुम् // 4 // ॐ क्षौं नेत्रत्रयाय वौषट् // 5 // ॐ क्षः अस्त्राय फट् // 6 // इति| हृदयादिषडंगन्यासः // एवं न्यासं कृत्वा ध्यायेत् // अथ ध्यानम् // ॐ नीलांजनादिनिभमूर्द्धपिशंगकेशं वृत्तोग्रलोचनमुदांतगदा कपालम् // आशांबरं भुजगभूषणमुग्रदष्ट्र क्षेत्रेशमद्भुततनुं प्रणमामि देवम् // 1 // इति ध्यात्वा मानसोपचारैः संपूजयेत् // ततः पीठादो रचिते सर्वतोभद्रमंडले मंडूकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताः संस्थाप्य "ॐ में मंडूकादिपरतत्त्वांतपीठदेवताभ्यो नमः // " इति संपूजयेत् // अस्य | पाठशक्त्यादेरभावः // ततः स्वर्णादिनिर्मितं यंत्रं मूर्ति वा ताम्रपाने निधाय घृतेनात्यज्य तदुपरि दुग्धधारां जलधारां च दत्त्वा स्वच्छवस्त्रेण| संशोष्य पीठमध्ये संस्थाप्य प्रतिष्ठां च कृत्वा पुनन्विा मूलेन मूर्ति प्रकल्प्यावाहनादिपुष्पांतैरुपचारैः संपूज्यावरणपूजां कुर्यात्॥ तद्यथाषट्कोणकेसरेषु आग्नेय्यादिचतुर्दिक्षु मध्ये दिक्षु च "ॐ क्षां हृदयाय नमः / हृदयश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। इति सर्वत्र॥1॥ // 28 // For Private And Personal Use Only