________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir त्यशांत्यर्थ तिलैश्चाज्येन संयुतैः // होमस्थाने तु संस्थाप्य कुंभमेकं जलान्वितम् // 17 // मंत्र जप्त्वा सहस्रं तु कुं स्पृश्य प्रयत्नतः॥ अभिषेकं तु तेषां वै शाला प्रोक्ष्य प्रदक्षिणम् // 18 // ग्रहयामादिशांतिस्तु सर्वैः कार्या तु पूर्ववत // वास्तुपूजा प्रकर्तव्या प्राच्यां दिशि पदे शुभे // 19 // ईशानाय बलिः कार्यः पशूनां पतये तथा // एवं कृते पशूनां तु प्रजानां शांतिमानुयात् // 20 // अद्भुतेषु च सर्वेषु पशूनां ग्रामबाह्यतः॥ उपविश्य जपेद्रुदं त्वरितं बहुभिः मह॥२३॥ होमः पलाशसमिधाः कर्तव्यो घृतसंयुजाः॥ ईशानाय बलिः कायों यस्यां दिशि तदद्भुतम् // 22 // तदाशापतये चैव पशूनां पतये तथा // वृष्टिकामो जपेल्लक्षं तिलहोमो घृतान्वितैः // 23 // बलिपूजा प्रकर्तव्या शिवस्य वरुणस्य च॥ सर्वस्मिन्नपि चैवार्थे त्वरितस्य जपो भवेत्॥२५॥अयुतद्वयजाप्यैस्तु यावल्लक्षं ततोधिकम्॥एवं कृते तु सिद्धिः स्यान्निष्कामः प्रामुयाच्छिवम्॥२५॥ऐहिका मुष्मिकान्भोगान्भुक्त्वा सायुज्यमानयात्॥इत्येकत्रिंशदक्षरत्वरितरुद्रमंत्रपुरश्चरणम् // // अथ दक्षिणामूर्तिमंत्रप्रयोगः // अथ वक्ष्ये मंत्ररत्नं समस्त पुरुषार्थदम् // अवापुर्येन जमेन दिव्यं ज्ञानं मुनीश्वराः // 1 // तत्रादौ / पट्त्रिंशदक्षरमंत्रप्रयोगः (शारदातिलके) मंत्रो यथा। "ॐ ह्रीं दक्षिणामूर्तये तुत्यं बटमलनिवासिने // ध्यानकनिरतांगाय नमो रुद्राय शं भवे ह्रीं ॐ” इति षट्त्रिंशदक्षरमंत्रः॥ अस्य दक्षिणामूर्तिमंत्रस्य शुक ऋषिः / अनुष्टुप् छंदः / दक्षिणामूर्तिशंभुदेवता चतुर्विधपुरुषार्थ / सिद्धये जपे विनियोगः॥ ॐ शुकऋषये नमः शिरसि // 1 // अनुष्टुप्छंदसे नमः मुखे // 2 // दक्षिणामृतिशंभुदेवतायै नमः हृदि॥३॥ विनियोगाय नमः सर्वांगे // 4 // इति ऋष्यादिन्यासः // ॐ ह्रीं दक्षिणामूर्तये ह्रीं ॐ अगुष्ठाभ्यां नमः // 1 // ॐ ह्रीं तुज्यं ह्रीं ॐ। तर्जनीभ्यां नमः // 2 // ॐ ह्रीं बटमूलनिवासिने ह्रीं ॐ मध्यमाभ्यां नमः // 3 // ॐ ह्रीं ध्यानकनिरतांगाय ह्रीं ॐ अनामिकाभ्यां न For Private And Personal use only