________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir www.kabalrm.org कर्णयुग्मकम् // अष्टाक्षरो महामंत्रः सर्वाभीष्टफलप्रदः॥ 6 // ह्रीं बीजं मे शिखां पातु हृदये भुवनेश्वरः // चन्द्रबीजं विसर्गाडयं पातु मे गुह्यदेशकम् // 7 // त्र्यक्षरोसौ महामंत्रः सर्वतंत्रेषु गोपितः // शियो वह्निसमायुक्तो वामाक्षिबिंदुभूषितः // 8 // एकाक्षरो महा मंत्रः श्रीमूर्यस्य प्रकीर्तितम् // गुह्याद्रुपतरो मंत्रो बांछा चिंतामणिः स्मृतः॥९॥ शीपदिपादर्पयतं सदा पातु मनूनमः // इति ते कथितं / दिव्यं त्रिषु लोकेषु दुर्लभम् // 10 // श्रीपदं कांतिदं नित्यं धनारोग्यविवर्धनम् // कुष्ठादिरोगशमनं महाव्याधिविनाशनम् // 13 // त्रिसंध्यं यः पठेन्नित्यमरोगी बलवान्भवेत् // बहुना किनिहीतेने ययन्मनमि वर्तते॥ 12 // तनत्सर्व भवत्येव कवचस्य च धारणात् // भूतप्रेतपिशाचाश्च यक्षगंधर्वराक्षसाः // 13 // जमराक्षनवेताला नैवद्रष्टुनपि क्षमाः // दृरादेव पलायंते तस्य संकीर्तनादपि // 14 // भूर्जपत्रे समालिग्ब्य रोचनागुरुकुंकुमैः // रविवारे च संक्रांत्यां नतम्यां च विशेषतः // 15 // धारयेत्माधक श्रेष्ठलैलोक्यविजयी भवेत // त्रिलोहमध्यगं कृत्वा धारयेद्दक्षिणे भुजे // 16 // शिखायामथ वा कंठे मोपि भूयों न संशयः // इति ते कथितं साम्ब त्रै लोक्ये मंगलाभिधम् // 17 // कवचं दुर्लभं लोके तब नेहायकाशितम् / / अज्ञात्वा कवच दिव्यं यो जपेत्सूर्यमुत्तमम् / / सिद्धिर्न जायते / तस्य कल्पकोटिशतैरपि // 18 // इति ब्रह्मयामले त्रैलोक्यमंगलं नाम श्रीमूर्यकवचं समानम् // // अथ सूर्यस्तवराजप्रारंभः // वसिष्ट थी व उवाच // स्तुबस्तत्र ततः माम्बः कशो धमनिसंततः // राजन्नामसहस्रण महस्रांशुं दिवाकरम् // 1 // खिद्यमानं तु तं दृष्ट्वा सूर्यः कृष्णा त्मजं तदा // स्वमे तु दर्शनं दत्त्वा पुनर्वचनमब्रवीत् // 2 // श्रीसूर्य उवाच।।साम्बसाम्ब महाबाहो शृणु जाम्बवतीसुत॥अलं नामसहस्रग पठ विमं स्तवं शुभम् // 3 // यानि नामानि गुह्यानि पवित्राणि शुभानि च // तानि ते कोर्तयिष्यामि श्रुत्वा वत्सावधारय // 4 // For Private And Personal Use Only