________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabati.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir मै० म०वत भवनगों भैरवो नः पुनातु // 4 // या काचिद्योगिनी रोद्रा सोम्या घोरतरापरा // गृह्यतां बलिपूजां सा मम व्याधि व्यपोहत्॥५॥ 0 ख०१ नंदतु साधकाः सर्वे विनश्यंतु प्रदूषकाः॥अवस्था शांभवी मेऽस्तु प्रसन्नोस्तु गुरुः सदा॥६॥” इति पठेत्॥ततो जपदशांशेन होमतर्पणमा भतं. पार्जनबाह्मणनोजनं च कृत्वा ब्राह्मणान जपानुसारेण दक्षिणादिभिः संतोष्य आचार्य कार्यानुसारेण दक्षिणायस्वालंकारादिभिः परितोष्यतरं०१० प्रणमेत // तथा च / " अयं दीपविधिः प्रोक्तो बटुकम्य तवानये // योजनीयः प्रयत्नेन सत्यंसत्यं वदाम्यहम् // 1 // परिवारसमा यक्ती मपुत्री सहपनिको // सर्वान्देवान्त्रपूज्याथावरणेन समन्वितान् // // मध्यं तु पूजयेदेवं वटुकं दीपमध्यतः // पंचोपचारैः संपू ज्य अपदीपादिभिः कमात // 3 // कवचं स्तवराजं च आपदुद्धारणं जपेत // मंत्र लक्षं जपेद्देवि कवचं चायुतं पठेत // 4 // सहस्रं स्तिवराजं च कार्यमद्विश्य मंत्रवित // कला चतुर्गणं प्रोक्तं दीपायप्रपठेत्मदा // 5 // सूर्यास्तकालमारण्य यावत्सूर्योदयो भदेत // ताव मंत्र जपेद्रात्री कार्यमृद्दिश्य मंत्रवित // 6 // अष्टमीदिनमारस्य यावत्कृष्णा चतुर्दशी // तावन्मंत्र जपेद्रात्री सर्वकार्यप्रसाधने // 7 // नदीतीरे शिवागारे विल्यमूले गिरी नथा।। गुहायां सिद्धपीठे च सन्निधौ भैरवस्य च // 8 // पुत्रप्राप्तिः महने स्याद्विगुण च धनागमः॥ त्रिगुणे बंधनान्मुक्तिश्चतुःमध्ये प्रियागमः।५॥बाणमव्य स्तंतनं स्याद्रममंग्ये भयो भवेत्॥मत्रमंग्व्ये जगदृश्यमष्टसंख्ये तु मोहनम्।१०॥ अंकसंग्व्य महोत्साह उच्चाटो दशमग्यके | एकादशेन देवेशि ह्यखिलाः सिद्धयः स्मृताः // 11 // लक्षणेकेन देवेशि चक्रवती भवेद्धवम् // कोटिमंग्व्ये महादेवि भवेटरवमन्निभः // 12 // नौकाया व्यवहारे च जपेत्सतशतं तथा // कृषिकर्मणि वाणिज्ये // 24 // रुद्रमंच्याशतानि च // 13 // दीपाये कलशाये च पठित्वा फलमानुयात // दीपाये च यथाशक्ति गायत्री वटुकस्य च // 14 // For Private And Personal Use Only