________________ www. Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kasagar Gyanmandir bath.org अस्त्राय फट् // 6 // इति हृदयादि पडङ्गन्यासः // एवं न्यासविधि समाप्य कामनापरत्वेनोपयोगिरूपं ध्यायेत्।।अथ सात्त्विकं ध्यानम् Lal वंदे बालं स्फटिकसदृशं कुंडलोद्भासितांगं दिव्याकल्पैनवमणिमयैः किंकिणीनूपुराव्यैः // दीनाकारं विशदवदनं सुप्रसन्नं त्रिनेत्रं हस्ता। याभ्यां वटुकसदृशं शूलदंडी दधानम् // 1 / / अथ राजमं ध्यानम् // उद्यद्भास्करसभिन्नं त्रिनयनं रक्तांगरागस्रज स्मेरास्यं वरदं कपालमभयं शूलं दधानं करैः॥ नीलग्रीवमुदारभूषणयुतं शीतांशुखंडोज्ज्वलं बंधूकारुणवाससं भयहरं देवं सदा भावये ॥२॥अथ तामसं ध्यानम्।। ध्यायेन्नीलादिकांतं शशिशकलधरं मुंडमालं महेशं दिग्वस्त्रं पिंगकेशं डमरुमथ मुणिं खड्गपाशाभयानि // नागं घंटां कपालं करमरमिरुहै। बिश्चतं भीमदंष्ट्रं दिव्याकल्लं त्रिनेत्रं मणिमयविलसत्किंकिणीनपुराट्यम् / / 3 // अथ सकलमनोरथप्राप्त्यर्थमिदं त्रिगुणात्मक ध्या नम् // शुद्धःस्फटिकसंकाशं सहस्रादित्यवर्चसम् // नीलजीमूतसंकाशं नीलांजनसमप्रभम् // 3 // अष्टबाहुं त्रिनयनं चतुर्बाहूं दिया / हुकम् // दंष्ट्राकरालवदनं नपुरारावसंकुलम् // 2 // भुजंगमेखलं देवमग्निवर्ण शिरोरुहम् // दिगंबरं कुमारेशं बटुकाख्यं महाबलम्॥३॥ खटांगमामिपाशं च शूलं दक्षिणभागतः // डमरूं च कपालं च वरदं भुजगं तथा // आत्मवर्णसमोपेतं सारमेयसमन्वितम् // 4 // अथ साधारणं ध्यानम् // करकलितकपालः कुंडली दंडपाणिस्तरुणतीमिरनीलो व्यालयज्ञोपवीती / / ऋतुसमयसपर्या विनविच्छेदहेतुर्जयति बटुकनाथः सिद्धिदः साधकानाम् // 1 // आनीलकुंतलमलक्करक्तवर्ण मौनीकतं कृत मनोज्ञमुखारविंदम् // कल्याणकीर्तिकमनीयकपालपाणिं बंदे महावटुकनाथमभीष्टसिद्धयै // 2 // आनम्रसर्वगीर्वाणशिरोमँगांगसंगि। ऋरकार्येषु सर्वेषु ध्यानं थे तामसं स्मृतम् / / वश्ये विद्धषणे स्तंभे राजसं ध्यानमीरितम् // सात्विक शुभकार्येषु ध्यानभेदः समीरितः // सर्वकामार्थसिद्धयर्थ राजसं ध्यानमुच्यते // 71 For Private And Personal Use Only