________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir // अथ हनुमदादिषट्कवचप्रयोगः॥ (श्रीमदानंदरामायणे मनोहरकांडे )आदौ नरैारुतेश्च पठित्वा कवचं शुभम् // ततः शत्रुघ्नकवचं पठनीयमिदं शुभम् // 1 // पठनीयं भरतस्य कवचं परमं ततः॥ ततः सौमित्रिकवचं पठनीयं सदा नरैः // 2 // पठनीयं ततः सीताकवचं भाग्यवर्द्धनम् // ततः श्रीरामचंद्रस्य कवचं सर्वदोत्तमम् // 3 // पठनीयं नरैक्त्या सर्वांछितदायकम् // एवं षट् कवचान्यत्र पठनीयानि सर्वदा // 4 // पठनं षट्कवचानां श्रेष्ठं मोक्षकसाधनम् // ज्ञात्वात्र मानवैर्नरत्या कार्य च पठनं सदा // 5 // अशक्तेनात्र चत्वारि पठनीयानि सादरम् // हनूमतश्च सौमित्रः सीताया राघवस्य च // 6 // इमानि पठनीयानि चत्वारि / कवचानि हि // चतुर्णा कवचानां च पठने मानवाय च // 7 // न यद्यत्रावकाशश्चेत्तदा त्रीणि पठेन्नरः // मारुतेश्चात्र सीताया / स्तथा श्रीराघवस्य च // 8 // त्रयाणां कवचानां च न पाठावसरो यदा // पठनार्थ मानवाय तदा द्वे कवचे स्मृते // 9 // मारुतेश्चाथ रामस्य सीताया राघवस्य वा // नैकमेव पठेच्चात्र श्रीरामकवचं शुभम् // 10 // अवकाशे कवचानां षट्कमेव सदा नरैः॥ पठनीयं क्रमेणेव कर्तव्यो नालसः कदा // 11 // यदावकाशो नास्त्येव तदा तेषां सुखाप्तये // मया विशेषः प्रोक्तोऽयं न सर्वेषां मये जरितः॥ 12 // तत्रादौ एकमुखिहनुमत्कवचपारम्भः // एकदा सुखमासीनं शंकरं लोकशंकरम् // प्रपच्छ गिरिजा कांतं कर्पूरधवल। शिवम् // 1 // श्रीपार्वत्युवाच // भगवन्देवदेवेश लोकनाथ जगत्त्रभो // शोकाकुलानां लोकानां केन रक्षा भवेध्रुवम् ॥२॥संग्रामे संकटे / घोरे भूतप्रेतादिके भये // दुःखदावाग्निसंतप्तचेतसां दुःखभागिनाम् // 3 // श्रीमहादेव उवाच // शृणु देवि प्रवक्ष्यामि लोकानां है हितकाम्यया // विभीषणाय रामेण प्रेम्णा दत्तं च यत्पुरा // 4 // कवचं कपिनाथस्य वायुपुत्रस्य धीमतः // गुह्यं तत्ते प्रवक्ष्यामि For Private And Personal Use Only