________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir मं० म० // 188 // // 20 // अपि वर्षसहस्राणां पूजानां फलमानुयात् // भूजें बिलिख्य गुटिकां स्वर्णस्था धारयद्यदि // 23 // कंठ वा दक्षिण बाहौ पू० खं० 1 नरसिंहो भवेत्स्वयम् ॥योषिवामभुजे चैव पुरुषो दक्षिणे करे // 22 // विभूयात्कवचं पुण्यं सर्वसिद्धियुतो भवेत् // काकबन्ध्या वि.तं. |च या नारी मृतवत्सा च या भवेत् // 23 // जन्मवन्ध्या नष्टपुत्रा बहुपुत्रवती भवेत // कवचस्य प्रसादेन जीवन्मुक्तो भवेन्नरः तरं०७ // 24 // त्रैलोक्यं शोभयत्येवं त्रैलोक्यविजयी भवेत् // भूतप्रेतपिशाचाश्च राक्षसा दानवाश्च ये // 25 // तं दृष्ट्वा प्रपलायते / देशाद्देशांतरं ध्रुवम् // यस्मिन्गृहे च कवचं ग्रामे वा यदि तिष्ठति // तद्देशं तु परित्यज्य प्रयांति पतिदूरतः॥ 26 // इति / ब्रह्मसंहितायां त्रैलोक्यमोहनं नाम नृसिंहकवचं समाप्तम् // इति श्रीमंत्रमहार्णये पूर्वखण्डे विष्णुतंत्रे सनमस्तरंगः // 7 // समाप्तमिदं विष्णुतंत्रम्। // 188n For Private And Personal Use Only