Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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ज्य राज्य लक्ष्मी पाय देवों के सुख भाग फिर बैराज्ञ को प्राप्त होय कर परमपद का प्राप्त होय हे मोच का ,
अविनाशी सुख उपकरणादि सामग्री के आधीन नहीं, निरन्तर आत्माधीन है, वह महासुख अंतर रहित है अविनश्वरहै ऐसे सुखको कौन न बांछे राजा प्रतिबल के गगनानंद पुत्रभए उसके खेचरानन्द उसके गिरिनन्द इसभांति बानरवंशियों के वंशमें अनेक राजा भए वे राज्य तज वैराग्यधर स्वर्ग मोक्षको प्राप्त भए इस वंशके समस्त राजाओंके नाम और प्राक्रम कौन कहसके जिसका जैसा लक्षण होय सो तैसाही कहावे सेवाकरे सो सेवक कहावे धनुषधारै सो धनुषधारी कहावै परकी पीड़ा टालै सो शरणागति प्रतिपाल होय क्षत्री कहावे ब्रह्मचर्य पाले सो ब्राह्मण कहावे जो राजा राज्य तजकर मुनि होय सो मुनि कहावे श्रम कहिये तपधारे सो श्रमण कहावे यह बात प्रगटही है लाठीराखे सो लाठीवाला कहावे तैसे यह विद्याघर ध्वजावों पर बानरों के चिन्ह राखते भएइसलिये बानरवंशी कहाए क्योंकि संस्कृतमें वंश बांसको कहते हैं और कुलकोभी कहते हैं परन्तु यहांवंश शब्द बांस को वाचक है । बानरों के चिन्हकर युक्त वंश बांस वाली जो ध्वजा सो भई बानर वंश उस ध्वजावाले यह राजा बानरवंशीकहलाए भगवान् श्रीवासपूज्य के समय राजा अमरप्रभ भए उनने बानरों के चिन्ह मुकुट ध्वजामें कराए तब इनके कुल में यह रीति चली आई इस भान्ति संक्षेप से बानरवंशीयों की उत्पति कही इसकुलमें महोदधि नामा राजाभए तिन के विद्युत्प्रकाशा नामा राणी भई वह राणी पतीव्रता स्त्रियों के गुणकी निधान है जिसने अपने विनय
और अंगसे पति का मन प्रसन्न किया है राजाके सुन्दर सैकड़ों रानी हैं ति की यह राणी शिरोभाग्य | हे महा सौभाग्यवती रूपवती ज्ञानवती है उस राजा के महा प्राक्रमी एकसौ पाठ पुत्र भए तिनको राज्य
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