Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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भी इन्द्रमति पत्रको राज्य देय मुनि भए तिनके मेरु मेरु के मन्दिर उनके समीरणगति तिनके रविप्रभ तिनके अमरप्रभ पुत्र हुवा उसने लंकाके धनी की बेटी गुणवती परणी, गुणवती राजा अमरप्रभ के महल में अनेक भांति के चरित्राम देखती भई कहीं तो शुभ सरोवर देखे जिनमें कमल फलरहे हैं और भ्रमर गुआर करें हैं कहीं नील कमल फूल रहे हैं हंस के युगल क्रीडा कर रहे हैं जिनकी चोंच में कमलके तंतुहें
और क्रौंच सारस इत्यादि अनेक पक्षियों के चित्राम देखे सो प्रसन्न भई और एक ठौर पञ्च प्रकारके रत्नों के चर्णसे बानरोंके स्वरूप देखे वे विद्याघरों ने चितर हैं, राणी बानरोंके चित्रामदेख भयभीत होय कांपने लगी, रोमांच होय पाए पसेवकी बूंदोंसे माथेका तिलक बिगड़गया, और आंखों के तारे फिरनेलगे राजा अमरप्रभ यह बृत्तान्त देखा घरके चाकरों से बहुत खिझे कि मेरे विवाह में ये चित्राम किसने कराए मेरी प्यारी राणी इनको देख डरी तब बड़े लोगों ने अरज करी कि महाराज इसमें किसीका भी अपराध नहीं, आपने कही जो यह चित्राम कराणहारेने हमको विपरीत भाव दिखाया सो ऐसा कौनहै जो आप की आज्ञा सिवाय काम करे सबके जीवनमूल श्राप हो, आप प्रसन्न होयकर हमारी विनती सुनो आगे तुम्हारे वंशमें पृथिवी पर प्रसिद्ध राजा श्रीकण्ठ भए जिनने यह स्वर्ग समान नगरे बसाया और नाना प्रकारके कौतूहलका धारणेवाला जो यह देश उसके वह मूलकारण ऐसे होतेभए जैसे कर्मोंका मूलकारण रागादिक प्रपंच,बनके मध्य लतागृहमें सुखसों तिष्ठीहुई किन्नरी जिन के गुण गावें हैं और किन्नर गावें हैं, इन्द्र समान जिनकी शक्ति थी ऐसे वे राजा इन्होंने अपनी स्थिर प्रकृति से लक्ष्मी की चंचलता से उपजा जो नपयश सो दूर किया। राजा श्रीकण्ठ इन बानरों को देखकर आश्चर्य को प्राप्तभए और इन |
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