Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
११४
प्रज्ञापनासूत्रे एवं मृषावादेन यावद् मायामृषेण, जीवस्य च मनुष्यस्य च, शेषाणां नायमथ : समथ : नवरम् अदत्तादानं ग्रहणधारणीयेषु द्रव्येषु मैथुनरूपेषु वा रूपसहगतेषु वा द्रव्येषु शेषाणां सर्वेषु द्रव्येषु, अस्ति खलु भदन्त ! जीवानां मिथ्यादर्श नशल्यविरमणं क्रियते? हन्त अस्ति,कस्मिन् खलु भदन्त! जीवानां मिथ्यादर्शनशल्यविरमणं क्रियते ? गौतमः सर्वद्रव्येषु, एवं नैरयिकाणां यावद् वैमानिकानाम्, नवरम् एकेन्द्रियविकलेन्द्रियाणं नायमर्थः समर्थः ॥ सू. ७ ॥ हे गौतम ! छह जीवनिकायों में ( अत्थिणं भंते ! नेरइयाणं पाणाइवायवेरमणे कन्नइ ?) हे भगवन् क्या नारकजीवों को प्राणातिपात विरमण होता हैं? (गोयमा णो इणढे समढे) हे गौतम यह अर्थ समर्थ नहीं है ( एवं जाव वेमाणियाणं) इसी प्रकार यावत् वैमानिकों तक (णवरं) विशेष (मणूसाणं जहा जीवाणं) मनुष्यों को जीवों की तरह प्राणातिपातविरमण होता है ( एवं मुसावाएणं) इसी प्रकार मृषावाद से (जीवस्स य मणूसस्स य ) जीव को और मनुष्य को ( सेसाणं नो इणढे समढे ) शेष को यह अर्थ समर्थ नहीं अर्थात् विरमण नहीं होता
(णवरं ) विशेष ( आदिनादाणे गहणधारणिज्जेसु दव्वेमु ) अदत्तादान ग्रहण और धारण करने योग्य द्रव्यो में होता है ( मेहुणे रूवेसु बा रूवसहगएसु वा दव्वेसु) मैथुन रूपों में और रूप युक्त द्रव्यों में होता है। ___ (सेसाणं सव्वेसु दवेसु) शेष सभी द्रव्यों में ( अस्थि णं भंते ! जीवाणं मिच्छादसणसल्लवेरमणे कज्जइ ?) हे भगवन् ! क्या जोवों को मिथ्यादर्शन शल्यविरमण होता है ? ( हंता अस्थि) हां होता है ।
( कम्हिणं भंते ! जीवाणं मिच्छादसणसल्लवेरमणे कज्जइ ? ) हे भगवन् ! काएसु) गौतम! ७ अपनीयोमा
(अस्थिण भंते! नेरइयाण पाणाइवायवेरमाणे कज्जइ!) हे भगवन् ! शुनाने प्रायतिपात विरमण थाय छ ?(गोयमा! नो इणठे समड) हे गौतम! आमथ समथ नया (एवं जाव वेमाणियाण) मे घारे यावत वैमानि सुधी
___ (णवर) विशेष (मणूसाण जहा जीवाण) मनुष्योने पानी से प्रारतिपात विरभरा थाय छे (एवं मुसावाएण) २४ आरे भृषापाथी (जीवस्स य मणूसस्स य ) ने भने भनुध्यने (सेसाण नो इणठे समहे) शेषले २॥ अथ समथ नथा.
(णवर) विशेष (अदिन्नादाणे गहणधारणिज्जेसु दव्वेसु ) महत्तहान अड अने धा२९५ ४२वा योग्य द्रव्योमा थाय छे (मेंहुणे रूवेसु वा रूवसहगएसु वा दम्वेसु) भैथुन३पामा सने ३५ યુક્ત દ્રવ્યમાં થાય છે
(सेसाण सव्वेसु दध्वेसु) शेष मां द्रव्योमा (अस्थिण भंते ! जीवाण मिच्छादसण सल्लवेमरणे कज्जइ?) हे भगवन्!
शु भिश्यहाशनशस्य विरभर थाय छ? (हंता अस्थि) है। थाय छ (कम्हिण भंते! जीवाण मिच्छदिसणवेग्मणे कज्जइ ?) भगवन् ! शेभ योनु भिथ्याशन
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫