Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्र योगतिनाम्न:, अन्तराये खलु पृच्छा गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहर्तम्, उत्कृष्टेन त्रिंशत् सागरो पमकोटीकोटयः, त्रीणि च वर्षसहस्राणि अबाधा, अबाधोना कर्मस्थितिः कर्मनिषेकः ॥सू.१०॥ ___टीका -अथ एकेन्द्रियजातिनाम प्रभृति कर्मणां स्थिति प्ररूपयितुमाह-एगिदिय जातिनामए णं पुच्छा' हे भदन्त ! एकेन्द्रियजातिनाम्नः खलु कर्मणः क्रिपन्तं कालं स्थितिः पज्ञप्ता ? इति पृच्छा, भगवानाह- 'गोयमा !' हे गौतम ! 'जहण्णेणं सागरोवमस्स दोष्णि सत्त उत्कृष्ट दश कोडाकोडी सागरोपम (दस य वाससयाई अबाहा) दश सौ वर्ष का अबाधा काल (आबाहणिया कम्मढ़िई कम्मनिसेगो) अबाधा काल कम कर्म स्थिति कर्मनिषेक का काल (णीयागोयस्स पुच्छा ?) नीचगोत्र संबंधी प्रश्न ? गोयमा ! जहा अप्पसत्थविहायोगइनामस्स) हे गौतम ! जैसे अप्रशस्त विहा घोगति नामकमे की।
(अंतराए णं पुच्छा ?) अन्तराय संबंधी पृच्छा ? (गोयमा ! जहण्णेणं अंतो मुहुर्त, उक्कोसेणं तीसं सागरोपमकोडाकोडीओ) जघन्य से अंतर्मुहूर्त एवं उत्कृष्ट तीस कोडाकोडी सागरोपम (तिष्णि य चाससहस्साइं अबाहा) तीन हजार वर्ष का अबाधा काल (अबाहणिया कम्मटिई कम्मनिसेगो) अबाधा काल कम कर्मस्थिति कर्म निषेक का काल है।
टोकार्थ-अब एकेन्द्रिय जाति नामकर्म आदि कर्मों की स्थिति की प्ररूपणा की जाती है।
गौतमस्वामी-हे भगवन् ! एकेन्द्रिय जाति नामकर्म की स्थिति कितने काल की कही है ?
भगवान्-हे गौतम ! एकेन्द्रिय जाति नामकर्म की जघन्य स्थिति सागरो अबाहा) तेनो मे M२ पनी ममाया ४७ छ (बाहूणिया कम्मढ़िई कम्मनिसेगो)-ते અબાધા કાળ વગરની કર્મસ્થિતિ તે કર્મના નિષેકને કાળ છે
(नीयागोयम्स पुच्छा)-३ प्रभु नायगात्र नाममनी स्थिति समधी प्रश्न छः
(गोयमा ! जहा अपसत्थविहायोगतिनामस्स)-3 गौतम ! मप्रशस्त विहायोगति નામકર્મની સ્થિતિનો સમાન તે સમજવી.
(अंतराइएणं पुच्छा)- प्रभु, मतसय नाममनी स्थिति समधी प्रश्न छु
(गोयमा! जहाणेणं अंता मुहत्तं -हे गौतम ! धन्यथी मत इतनी छे, मने (उनकोसेणं तीसं सागरावमकोडाकोडीओ)-3थी , श्रीस tasी साग२५मनी अत. २राय नाममनी स्थिति छ. (तिण्णि य वाससयाई अबाहा)-तेनी न २ ५ न AAI छ. ( अबाहूणिया कम्मदिई कम्मनिसेगो)-ते समाधा४।७१ ११२नी स्थिति તે કર્મના નિષેકને કાળ છે.
ટીકાઈ-હવે એકેન્દ્રિય જાતિ નામકર્મ આદિ કર્મોની સ્થિતિની પ્રરૂપણા “નિરૂપણ કરવામાં આવે છે.
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫