Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रबोधिनी टीका पद ३१ सू० १ अवधिभेदनिरूपणम्
द्वयोः क्षायोपशमिकः, तद्यथा - मनुष्याणां पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानाञ्च || सू० १ ॥
टीका-पूर्व मधिकारद्वारगाथा प्ररूपिता सम्प्रति यथा निर्देशन्यायमनुसृत्य प्रथमम् अवधिभेद प्ररूपणार्थमाह-'कइविहाणं भंते ! अहो पण्यत्ता!' हे भरन्त | कतिविधः खलु अवधि:अवधिज्ञानमित्यर्थः प्रज्ञप्तः ? प्राकृतत्वात्स्त्रीत्व निर्देशो बोध्यः, भगवानाह - 'गोयमा !" हे गौतम ! दुविधा ओही पण्णत्ता' द्विविधः अवधिः प्रज्ञप्तः, 'तं जहा - भवपञ्चइया य खओवसमिया य' तद्यथा - भवप्रत्ययकश्च क्षायोपशमिश्श्च तत्र कर्मवशवर्तिनो जीवा भवन्ति अस्मिन् अवधिभेद वक्तव्यता
शब्दार्थ - (कविहाणं भंते ! ओही पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! अवधि कितने प्रकार का कहा गया है ? (गोयमा ! दुविहा ओही पण्णत्ता) हे गौतम ! अवधि के दो भेद कहे हैं (जहा-भवपच्चया य खत्रोवसमिया च) वह इस प्रकार - भव प्रत्यय और क्षायोपशमिक (दोपहं भववचया) दो को भवप्रत्यय अवधि होता है ( तं जहा - देवाण घ नेरइयाण य) देवों को और नारकों को (दोन्हं खओवसमिया ) दो को क्षायोपमिक अवधि होता है (तं जहा- मणूमाणं पंचिदियतिरिक्खजोणियाण य) वह इस प्रकार - मनुष्यों को और पंचेन्द्रिय तिर्यचों को । ॥ सू० १॥
टीकार्थ - इस से पहले अधिकार द्वारगाथा का निरूपण किया गया था । अब जिस क्रम से नाम निर्देश किया हो, उसी क्रम से व्याख्यान करना चाहिए, इस न्याय के अनुसार पहले अवधि के भेदों की प्ररूपणा करने के लिए कहते हैंगौतमस्वामी - हे भगवन् ! अवधि के कितने भेद कहे हैं ?
भगवान् हें गौतम ! अवधि के दो भेद कहे हैं, वे इस प्रकार हैं- (१) भव प्रत्यय और क्षायोपशमिक । कर्म के वशीभूत प्राणी जहां होते हैं वह भव कहઅવધિ લે વક્તવ્યતા
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शब्दार्थ : (कविहाणं भंते ! ओही पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! अवधि डेटा प्रहारनी उस छे ? (गोयमा ! दुविहा ओही पण्णत्ता) - गौतम ! अवधिना मे लेह छे (तं जहा भवपच्चइया य खओवसमिया य) ते या प्रकारे लवप्रत्यय भने क्षायोपशमि४. (दोन्हं भव पच्चइया) मेने लवप्रत्यय अवधि थाय छे. (तं जहा - देवाण य नेरइयाण य) देवाने अने नाराने (दोन्हं खओवसमिया) मेने क्षयोपशमि अवधि थाय छे. (तं जहा - मणूसागं पांच दिय तिरिक्खजोणियाण य) ते या अहारे मनुष्याने मने पथेन्द्रियतिर्यथने थाय छे. सू० १॥ ટીકા :-આનાથી પડેલા અધિકારદ્વારગાથાનું નિરૂપણ ટાયુ હતુ. હવે જે ક્રમથી નામ નિર્દેશ કર્યું હોય એજ ક્રમે વ્યાખ્યાન કરવુ' જોઈ એ, એ ન્યાયાનુસાર પહેલાં અવધિના ભેઢાની પ્રરૂપણા કરવાને માટે કહે છે
શ્રી ગૌતમસ્વામી-હે ભગવન્ ! અવધિના કેટલા ભેદ કહેલા છે ? શ્રી ભગવાન્ડે ગૌતમ ! અવધિના એ ભેદ કહ્યા છે, તે આ પ્રકારે છે-(૧)
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
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