Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
प्रबोधिनी टीका पद ३६ सू० १३ वैकियसमुद्घातविशेषनिरूपणम्
१०८९
समुद्घातेन समवहतः समवहत्य यान् पुद्गलान् निक्षिपति तैः खलु भदन्त । पुद्गलै कियत् क्षेत्रमा पूर्णम् ? कियत् क्षेत्रं स्पृष्टम् ? गौतम् ! शरीरप्रमाणमात्रं विष्कम्भबाहल्येन आयामेन जघन्येन अङ्गुलस्यासंख्येयभागम् उत्कृष्टेन संख्येयानि योजनानि एकदिशि एतावत् क्षेत्रम् एकसामायेकेन वा द्विसामयिकेत या त्रिसामयिकेन वा विग्रहेण एतावत्का लक्ष्य आभूर्णम् एतावत्कालस्य स्पृष्टम्, तान् खलु भदन्त ! पुद्गलान कियत्कालस्य निक्षि पति ? गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तस्य, उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तस्य ते खलु भदन्त ! पुद्गल
"
(जीवे णं भंते ! आहारगसमुग्धा एणं समोहए) हे भगवन् ! जीव आहारक समुद्घात से समवहत हुआ (समोहणित्ता) समवहत होकर (जे पोग्गले णिच्छु भइ) जिन पुद्गलों को बाहर निकालता है (तेहि णं भंते ! पोग्गलेहिं) हे भगवन् ! उन पुद्गलों से (केचइए खेते अफुणे) कितना क्षेत्र पूरित हुआ (haइए खेले फुडे) कितना क्षेत्र स्पृष्ट हुआ ? (गोयमा ! सरीरष्यमाणमेते चिक्भवा हल्लेणं) हे गौतम! विष्कंभ और बाहल्य से शरीर के बराबर (आघामेण जहणणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं ) लम्बाई में जघन्य अंगुल वे असंख्यायें भाग ( उक्को सेणं संखेज्जाई जोयणाई) उत्कृष्ट संख्यात योजन (एग समइएण वा दुसमण या तिसमइएण वा) एक समय के दो समय के अथव तीन समय के (बिग्गहेणं) विग्रह से ( एवइकालस्स अफुण्णे) इतने काल मे आपूर्ण हुआ (एवइकालस्स फुडे) इतने काल में स्पृष्ट हुआ ।
(ते णं भंते ! पोग्गला) हे भगवन् ! वे पुद्गल (केवइकालस्स निच्छु भइ न्द्रिय तिर्यथना ( एगदिस ) मे द्विशामां (एवइार खेत्ते अफुण्णे) मेटसां क्षेत्र मापूर्ण थया (ease खेत्ते फुडे) भेटवां क्षेत्र स्पृष्ट थया.
(जीवेण भंते! आहारगसमुग्धारण समोहए ) हे भगवन् ! कप माहारणसभुद्धातथी सभवडेत थयेल (समोहणित्ता) समवहत थाने (जे पोग्गले णिच्छुभइ) ने युगलाने महार पुढे छे (तेहिण भंते! पोग्गलेहिं) हे भगवन् ! ते युगसेोथी (केवइए खेत्ते अफुण्णे) उटा क्षेत्र पुरित थया ? (केवइए खेत्ते फुडे) डेंटला क्षेत्र स्पृष्ट थयां ?
(गोयमा ! सरीरमाणमेत्ते विवखंभबाह लेण) हे गौतम ! पिण्डल भने माहस्यथी शरीरनाराम (आयामेणं, जहणेण अंगुलरस असंखेज्जइभागं ) समाभां धन्य अशुबना असण्यातमा लाग ( उक्कोसे असंखेज्जाई जोयणाई) उत्ष्ट असंख्यात योजन ( एगदिसिं) मे दिशाभां (एवइए खेत्ते ) भेटला क्षेत्र (एगसमइपण वा, दुसमइएण वा तिसमइएण वा ) ४ समयना, मे समयना अथवा ऋतु समपना (विगहेण) विग्रहथी (ease कालस्स अफुण्णे) याला मां मायूर्य था ( वइए कालस्स फुडे) भेटला
કાળમાં સ્પષ્ટ થઇ.
( तेण भंते ! पोम्गला ) हे भगवन् ! ते युगलो (केवइकालस्स निच्छुभाइ ) डेटसा
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫