Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1134
________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ३६ सू० १५ केवलिसमुद्घातप्रयोजननिरूपणम् ____११२१ सर्वेऽपि खलु भदन्त ! केवलिनः समुद्घातं गच्छन्ति ? गौतम ! नायमर्यः समयः “यस्थायुपा तुल्यानि, बन्धनैश्च स्थितिभिश्च ! भवोपग्राहककर्माणि समुद्घातं स न गच्छति ॥१॥ अगत्वा समुदघातम् अनन्ताः केवलिनो जिनाः । जरामरणविप्रमुक्ताः सिद्धि वरगतिं गताः ॥२१॥ कतिसामयिकं खलु भदन्त ! आवर्जीकरणं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! असंख्येयसामयिका आन्त मुहर्तिकम् आवर्जीकरणं प्रज्ञप्तम्, कतिसामयिकः खलु भदन्त ! केनलिसमुद्घातः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! अष्टसामयिकः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-प्रथमे समये दण्डं समवहत होते हैं ? (सने विणं भंते ! केवलीसमुग्घायं गच्छंति ?) हे भगवन् ! सभी केवलीसमुद्घात को प्राप्त होते हैं ? (गोयमा ! णो इणढे सम?) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं-ऐसा नहीं होता । (जस्साउएण तुल्लाई बंधणेहि ठिईहिय भवोवग्गहकम्माइं) जिस के भवोपनाही कर्म बन्धन एवं स्थिति से आयु कर्म के बराबर होते हैं (समुग्घायं से ण गच्छद) वह केवलीसमुद्घात नहीं करता ॥१॥ (अगंतुणसमुग्घायं) समुदघात न करके (अणंता केवली जिणा) अनन्त केवलज्ञानी जिनेन्द्र (जरमरणविप्पमुका) जरा और मरण से सर्वथा रहित हुए हैं (सिद्धिं वरगई गया) श्रेष्ठ गति सिद्धि को प्राप्त हुए हैं ॥२॥ (कइसमइए णं भंते ! आउजीकरणे पण्णते) हे भगवन् ! आवर्जीकरण कितने समय का कहा गया है ? (गोयमा ! असंखेजइए अंतोमुहुत्तिए आउज्जी करणे पण्णत्ते) हे गौतम ! असंख्यात समय के अन्तर्मुहूर्त का आवर्जीकरण कहा गया है। (कइसमइए णं भंते ! केवलिसमुग्घाए पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! केवलिसमुद्: याय छ १ (सव्वे वि ण भंते ! केवलिसमुग्घायं गच्छंति १) भगवन् ! माली समुदधातने प्राप्त थाय छ ?(गोयमा ! णो इणट्रे समटे) हे गौतम ! म म समय नथीએમ નથી થતું. (जस्साउएण तुल्लाई बंधणेहिं ठिईडि य भवोवाहकम्माइं) रेमना सोपाडी ममन्धन तम स्थितिथी आयु मन ५२१२ उय छ (समुग्घायं से ण गच्छइ) क्षीसभुइ. ઘાત નથી કરતા ૧ ! (अगंतूण समुग्घाय)समुद्धात न श (अगंता केवलीजिणा) मन ज्ञानीछनेन्द्र (जरामरणविप्पमुक्का) १२॥ अने भ२६थी सवथा २हित येस (सिद्धिं वरगई गया) १२गति सिद्धिन-श्रेष्ठ सिद्धिन प्राप्त थयेटा छे ॥ २॥ (कइ समएण भंते ! आउज्जीकरणे पण्णत्ते १) ले सन् ! भाव ४२६ मा समयनi ४ छ १ (गोयमा ! असंखेज्ज समइए अंतोमुहुत्तिया आउज्जीकरणे पण्णत्ते) હે ગૌતમ ! અસંખ્યાત સમયના આન્તમુહૂર્તના આવાજીકરણ કહેલ છે. (कइ समइएणं भंते ! केव लिसमुग्घाए पण्णत्ते १३ सावन ! पतिसमुद्धात दक्षा શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫

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