Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्रे योगं युनक्ति, नो आहारकमिश्रशरीरकाययोगं युनक्ति, कार्मणशरीरकाययोगपि युनक्ति, प्रथमाष्टमयोः समययोरौदारिकशरीरकाययोगं युनक्ति द्वितीयषष्ठाष्टमेषु समयेषु औदारिकमिश्रशरीरकाययोगं युनक्ति, तृतीयचतुर्थपञ्चमेषु समयेषु कार्मणशरीरकाययोगं युनक्ति ॥९० १५॥
टीका-अथ केवलिनी समुद्घातप्रयोजनं प्ररूपयितुमाह-'कम्हा णं भंते ! केवली. सग्घायं गच्छइ ?' हे भदन्त ! कस्मात् खलु-कथं तावत् केवलिसमुद्घातं गच्छति-करोति ? वैक्रियशरीर काययोग का उपयोग नहीं करता (नो वेउब्वियमीसासरीर काय जोगं जुजइ) वैक्रियमिश्रशरीर काययोग को नहीं जोडते (नो आहारगसरीरकायजोग जुजइ) आहारकशरीर काययोग को नहीं जोडते (नो आहारगमीसासरीर कायजोगें जुंजइ) आहारकमिश्रशरीर काययोग का उपयोग नहीं करता (कम्मगसरीरकायजोगं पि जुंजइ) कार्मणशरीर काययोग को जोडता है (पढम हमेप्ट समएप्सु) प्रथम और अष्टम समय में (ओरालियसरीरकायजोगं जुंजइ)
औदारिकशरीर काययोग का प्रयोग करता है (वितियछट्ठसत्तमेसु समएसु) हितीय, छठे और सातवें समयों में (ओरालियमीमासरीर कायजोगं जुजइ)
औदारिकमिश्रशरीर काययोग का उपयोग करता है (ततियचउत्थपंचमसमएस) तीसरे, चौथे और पांचवें समयों में (कम्मगसरीरकायजोगं जुजह) कार्मण शरीर काययोग का उपयोग करता है। ॥ सू० १५॥
टीकार्थ-केवलियों के समुद्घात का प्रयोजन प्रकट करने के लिए प्ररूपणा की जाती हैगौतमस्वामी-हे भगवन् ! केवली किस प्रयोजन के लिए समुदघात करता
(नो वेउव्वियसरीरकायजोग जुंजइ) वैठिय शरीर याराना उपयोग नथी ४२ता (नो वेउव्वियमीसासरीरकायजोग जुजइ) वैठिय भिशरीर ४ययोगना ] 64या नयी ४२त.
(नो आहारगसरीरकायजोग जुजइ) मा २४ २२ ययागने नयी तता (नो आहारगमीसासरीरकायजोग जुंजइ) मा.२४ मिश्र शरी२ ४ययगर ५४४ नथी onlyता
(कम्मगसरीरकायजोग पि जुजइ) ४ शरी२ योगन छे.
(पढमट्टमेसु समएसु) प्रथम मने मटम समयमा (ओरालियसरीरकायजोग जुजइ) ઔદારિક શરીર કાયયેગનો ઉપયોગ કરે છે.
(बितियछटुसत्तमेसु समएसु) भात, छ। मने सातमा समयमा (ओरालिय भीसा सरीरकायजोग जुजइ) मोहरि मिश्र २१२ ४ायायाने उपयो। ४३ छे.
(ततियच उत्थपंचमसमएसु) त्रीत, याथा भने पांयमा समयमा (कम्मगसरीरकायजोग जुजइ) मा शरी२ योगनी उपयोग ४३ छे. ॥ २० १५॥
ટીકાર્ય :-કેવલિના સમુદુઘાતનું પ્રયોજન પ્રગટ કરવાને માટે પ્રરૂપણ કરાય છે– ગૌતમસ્વામી-ડે ભગવન્! કેવલિ કયા પ્રજનને લિધે સમુદ્દઘાત કરે છે અર્થાત
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫