Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्रे सर्वदुःखानामन्तं करोति ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः, स खलु ततः प्रतिनिवर्तते प्रतिनिवयं ततः पश्चाद् मनोयोगमपि युनक्ति यचोयोगमपि युनक्ति काययोगमपि युनक्ति, मनोयोग युञ्जानः किं सत्यमनोयोगं युनक्ति, मृषामनोयोगं युनक्ति, सत्यमृषामनोयोग युनक्ति असत्यामृषामनोयोगं युनक्ति ? गौतम ! सत्यमनोयोगं युनक्ति, नो मृषामनोयोगं युनक्ति, नो सत्यमृषामनोयोगं युनक्ति, असल्यामृषामनोयोगं युनक्ति, वचोयोगं युञ्जान किं सत्यवचोयोग युनक्ति, मूषावचोयोगं युनक्ति, सत्यमृषावचोयोगं युनक्ति, असत्याचाइ, सव्वदुक्खाणं अंतं करेइ ?) हे भगवन् ! उस प्रकार समुद्घात को प्राप्त केवली सिद्ध हो जाते हैं ? बुद्ध हो जाते हैं ? मुक्त हो जाते हैं ? परितिर्वाण प्राप्त करते हैं ? सर्वदुःखों का अन्त करते हैं ? (गोयमा ! नो इणट्टे सम?) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं हैं ऐसा नहीं हो सकता (से णं तओ पडिनियत्तई) वे उससे प्रतिनिवृत्त होते हैं (पडिनियत्तित्ता) प्रतिनिवृत्त होकर (तओ पच्छा) तत्पश्चात् (मणजोगं यि जुंजइ) मनोयोग का भी व्यापार करते हैं (वइजोगं वि जुंजइ) वचनयोग का भी व्यापार करते हैं (कायजोगं वि जुंजइ) काययोग का भी व्यापार करते हैं।
(मणजोगं जुजमाणे) मनोयोग का व्यापार करते हुए (किं सच्चमणजोगं सृजइ ?) क्या सत्यमनोयोग का व्यापार करते हैं ? (मोसमणजोगं झुंजइ ?) क्या मृषामनोयोग का व्यापार करते हैं ? (सच्चामोसमणजोगं जुजइ ?) सत्य मृषा मनोयोग का व्यापार करते हैं ? (असच्चामोसमणजोगं जुजई ?) असत्यासव्वदुःखाण अंत करेइ) है मगर ! प्रारे समुद्धातन प्राप्त ५A सिद्ध २४ જાય છે? બુદ્ધ થઈ જાય છે, મુક્ત થઈ જાય છે? પરિનિર્વાણ પ્રાપ્ત કરે છે? સર્વ माना २५-1 ४२ छे ?
(गोयमा ! नो इणद्वे समझे) हे गौतम ! मी म समय नथी-मेम नयी ४ शत.
(से ण तओ पडिनियत्तइ) ते अनाथी प्रतिनिवृत्त थाय छ (पडिनियत्तित्ता) प्रतिनिवृत थने (तओ पच्छा) तत्पश्चात (मणजोगं वि जुजइ) मनायोगना ५ व्यापार ४२ छ (वइजोग वि जुजइ) पयनयोगनो ५ व्यापार ४२ छे (कायजोगवि जुंजइ) ययानो પણ વ્યાપાર કરે છે.
(मणजोग जुजमाणे) भनायोगनी व्यापार ४२di vdi (किं सच्चमणजोग जुजइ ?) शु सत्य भनायोगना व्यापा२ ४३ छ ? (मोसमणजोग जुजइ ?) शुभृषामनायोगनो व्य॥५२ ४२ छ ? (सच्चामोसमणजोग जुजइ) सत्य भृषमनायोगनो व्यापार ५२ छ ? (असच्चामोसमणजोग जुंजइ ?) मसत्या भूषा मनोयोगना व्यापा२ ४२ छ ?
(गोयमा ! सच्चमणजोग जुंजइ) हे गौतम ! सत्यमनायोनी प्रयोग ३२ छे
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫