Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्रे
जीवनः दर्शनज्ञानोपयुक्ताः निष्ठिताः नीरजसो निरेजना वितिमिराः विशुद्धाः शाश्वतमनागतार्द्ध कालं तिष्ठन्ति ? गौतम ! तत् यथानाम बीजानामग्निदग्धानां पुनरपि मङ्करोत्पत्ति भवति एवमेव सिद्धानामपि कर्मवाजेषु दग्धेषु पुनरपि जन्मोत्पत्तिर्न भवति, तत् तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते ते खलु सिद्धा भवन्ति अशरीरा जीवघना दर्शनज्ञानोपयुक्ता निष्ठिता नीरजसो निरेजना वितिमिरा विशुद्धाः शाश्वतमनागताद्धं कालं तिष्ठन्ति इति, निस्तीर्ण सर्वदुःखा जातिजरामरणबन्धनविमुक्ताः । शाश्वतमन्यावाधं तिष्ठन्ति सुखिनः सुखं प्रज्ञप्ताः॥ १ ॥ इति प्रज्ञापनायां भगवत्यां समुद्यातपदं षट्त्रिंशत्तमं पदं समाप्तम् ।। ३६५०१७।।
टीका - अथ समुद्घातगतस्य केवलिनः सयोगावस्थायां सिद्ध्याद्यभावं प्रतिपादयितुमाह - ' से णं भंते! तहा स जोगी सिज्झइ जाव अंत करेइ ?' हे भदन्त ! स खलु केवली ( ते णं तत्थ सिद्धा) इत्यादि पूर्ववत् (गोगमा ! से जहानामए बीयाणं अग्गिदाणं) हे गौतम! जैसे आग में जले बीजों से (पुणरवि) फिर भी ( अंकुरुपत्ती ण भवइ) अकुर की उत्पत्ति नहीं होती (एवामेव) इसी प्रकार (सिद्धाण वि) सिद्धों के भी (कम्मबीएस दड्ढेसु) कर्म बीजों के जल जाने पर पुणरवि) फिर भी ( जम्मुप्पत्ती) जन्म - उत्पत्ति (ण भवइ) नहीं होती (से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं युच्चइ) इस हेतु से हे गौतम ! ऐसा कहा है इत्यादि पूर्ववत् ।
(निच्छिणण्यदुक्खा) सब दुःखों से पार हुए (जाइजरामरणबंधणविमुक्का ) जन्म, जरा, मरण एवं बन्धन से सर्वथा मुक्त (सास) सदैव (अवावाह) बाधा रहित (चिति) रहते हैं (मुही) सुखी (सुहं पत्ता) सुख को प्राप्त । ॥ सू० १७ ॥ छत्तीसवां पद समाप्त
टीकार्थ- केवली जब समुद्घात -अवस्था में होते हैं, तब उन्हें सिद्धि नहीं अणभा रहे छे. (से केणणं भंते! एवं वुच्चइ) उया हेतुथी हे भगवान मेवु (ते) त्याहि पूर्ववत्.
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( गोयमा ! से जहानामए बीयाण अग्गिदड्ढाण) हे गौतम! प्रेम आगमां सजगेस जीथी (पुणरबि) इरी पशु (अंकुरुत्पत्ती ण भवइ) अंडुरनी उत्पत्ति नधी थती.
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( से तेणटुण गोयमा ! एवं बुच्चइ) मा हेतुथी हे गौतम! मे उछे पगेरे पूर्ववत्. (निच्छिण्ण सव्वदुक्खा) सौ दुःपोथी पार थयेला (जाइजरामरणबंधणविमुक्का ) भन्भ, भरा, भरण तेभन मंधनथी सर्वामुक्त (सासय) सदैव (अव्वाबाह) आधारहित (चिति) रहे छे (सुही) सुमी (सुपत्ता) सुमने प्राप्त ॥सू००१७
છત્રીસમુ પદ સમાપ્ત
ટીકા :-કેટલી જ્યારે સમુદ્ધાત અવસ્થામાં હાય છે, ત્યારે તેમને સિદ્ધિ પ્રાપ્ત
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫