Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
१९१२
प्रज्ञापनासूत्रे नार्थेन गौतम ! एवमुच्यते-छद्मस्थः खलु मनुष्यस्तेषां निर्जरापुद्गलानां नो किश्चिद वर्णेन वर्णम्, गन्धेन गन्धम्. रसेन रसम्, स्पर्शेन स्पर्शम्, जानाति पश्यति, सूक्ष्माः खलु ते पुद गलाः प्रज्ञप्ताः श्रमणायुष्मन् ! सर्वलोकमपि च स्पृष्ट्वा तिष्ठन्ति ॥ सू० १४ ॥
टोका-पूर्व षण्णामपि छाअस्थिकानां वेदनादि समुद्घातानामारचने जघन्येन उत्कृष्टेन वा यात्प्रमाणं क्षेत्रमात्मविश्लिष्टः पुद्गले यथासंभवमौदारिकादिशरीरान्तर्गतरापूर्ण भवति तावत्प्रमाणमुपदर्शितम्, सम्प्रति-केवलिसमुद्घातविधौ यथा स्वरूपै वित्प्रमाणं क्षेत्रमापूर्ण भवति तथा स्वरूपैः पुद्गले स्तावत्प्रमाणस्य क्षेत्रस्यापूरणं प्ररूपयितुमाह --'अणगारस्सणं भंते ! भावियप्पणो केवलिस मुग्धा एणं समोहयस्स जे चरमा निज्जरापोग्गला, सुहुमाणं ते हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है (छ उमस्थेणं मणूसे) छमस्थ मनुष्य (तेसि निजरा पोगगलाणं) उन निर्जरा-पुदगलों के (नो किंचि वण्णेणं वणं, गंधेणं गंध, रसेणं रसं, फासेणं फासं जाणइ पासइ) किंचित् नेत्र से वर्ण को, घ्राण से गंध को, रसनेन्द्रिय से रस को और सार्शन्द्रिय से स्पर्श को नहीं जानता देखता (सुहुमा णं ते पोग्गला पण्णता सभणाउसो!) हे श्रमण ! आयुष्मन् ! वे पुद्गल सूक्ष्म कहे गए हैं (सव्वलोगं विय णं फुसित्ता चिटुंति) समग्र लोक को स्पर्श कर के वे रहे हुए हैं। ।। सू० १४ ॥
टीकार्थ-पहले यह निरूपण किया गया है कि छहों वेदनादिक छानस्थिक समुद्घातो की रचना करने में कम से कम और अधिक से अधिक इनना क्षेत्र आत्मा से पृथक किए गए एवं औदारिक आदि शरीरों के अन्दर रहे हए पुदगलों से आपूर्ण होता है। अब यह दिखलाते हैं कि केवलितमुद्घात करने में उन पुदगलों के द्वारा कितना क्षेत्र व्याप्त किया जाता है ? एवं वुच्चइ) मे तुथी गौतम ! मे पाय है
(छउमत्थेण मणूसे) ७६६२५ मनुष्य (तेसि निज्जरापोगलाण) तेन पुगतान (नो किंचिवण्णेण वण्ण', गंधेणं गधं, रसेण रस, फासेणं फास जाणइ पासइ) यित् નેત્રથી વર્ણને, નાકથી ગંધને, રસેન્દ્રિયથી રસને, સ્પર્શેન્દ્રિયથી સ્પર્શને નથી જાણતા-દેખતા.
(सुहमाण ते पोग्गला पण्णता समणाउसो) 3 श्रम, सायुधमन् , ते पुदरासो सूक्ष्म सा छे (सव्य लोग पि य ण फुसित्ताण चिटुंति) समय सोने २५४ शन તેઓ રહેલા છે. જે સૂ૦ ૧૪
ટીકા :-- પહેલાં નિરૂપણ કરેલું છે કે છએ વેદના વગેરે છ મસ્થિક સમુધાતેની રચના કરવામાં એ છામાં ઓછી અને અધિકથી અધિક આટલાં ક્ષેત્ર આત્માથી જુદાં કરાયાં તેમ જ ઔદારિક વગેરે શરીરની અંદર રહેલા પુદ્ગલથી આપૂર્ણ થાય છે.
હવે તે દેખાડે છે કે કેવલિસમુદ્દઘાતમાં તે પુદ્ગલ દ્વારા કેટલાં ક્ષેત્ર વ્યાપ્ત राय छ ?
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫