Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमैयबोधिनी टीका पद ३६ सू० १२ वेदनासमुद्घातगतजीवस्वरूपनिरूपणम् १०६७ विग्रहेण, एतावत :कालस्य आपूर्णम् एतापत्कालस्य स्पृष्टम् शेषं तच्चैप यायत पश्चक्रिया अपि, एवं नैरयिकोऽपि, नवरम् आयामेन जघन्येन सातिरेकं योजनसहस्रम् उत्कृष्टेन असं ख्येयानि योजनानि, एकदिग, एतावत् क्षेत्रम् आपूर्णम् एतावत् क्षेत्रं स्पृष्टम् विग्रहेण एक समयेन वा द्विसमयेन वा त्रिसमयेन वा नवरं चतुः समयेन वा न भण्पते, शेष तच्चैप यावत् पश्च: क्रिया अपि, असुरकुमारस्य यथा जीवपदे, नवरं विग्रहस्खिसमयो यथा नैरयिकस्य, शेषं तच्चैव यथा असुरकुमार एवं यावद् वैमानिको नपरम् एकेन्द्रियो यथा जीयो निरवशेषम् ॥१२॥ घा दुसमइएण वा तिसमइएण वा चउसमहएण वा बिग्गहेणं) हे गौतम : एक समय के, दो समय के, तीन समय के अथवा चार समय के विग्रह से (एचइ कालस्म अफुण्णे) इतने काल में पूरित होता है, (एबइ कालस्स फुडे) इतने काल में स्पृष्ट होता है (सेसं तं चेव जाव पंचकिरिया वि शेष वही यायत पांच क्रिया वाले भी (एव नेरइए बि) इसी प्रकार नारक भी (णवरं) विशेष (आयामेणं जहाणेणं साइरेगं जोयणलहस्स) लम्बाई में जघर कुछ अधिक हजार योजन (उक्कोसेणं असंखेजाई जोयणाई) उत्कृष्ट असंख्यात योजन (एगदिसिं) एक दिशा में (एचइए खेत्ते अप्फुण्णे) इतना क्षेत्र पूरित होत है (एचइए खेत्ते फुडे) इतना क्षेत्र स्पृष्ट होता है (विग्गहेणं एगसमइएण व दुसमइएण चा तिसमइएण वा) एक समय के, दो समय के अथवा तीन समर के विग्रह से (णवरं चउसमइएण या न भण्णइ) विशेष चार समय वे विग्रह से नहीं कहना (सेसं तं चेव जाच पंचकिरिया वि) शेष बही यावर पांच क्रिया वाले भी
(असुरकुमारस्स जहा जीवपए) असुरकुमार का कथन जीवपद के समान पूरित थाय छ (केवइ कालस्स फुडे ?) टan Mi २५ थाय छ १ (गोयमा! एगसमह एणं वा दुसमइएण वा तिसमयइएण वा चउ समइएण वा विग्गहेण) हे गौतम ! मे समयना, ये सभयना, समयना अथवा यार सभयना पिथी (एबइ कालस्स अफुण्णे) मेट। भi पूरित थाय छ (एवइकालस्स फुडे) सेटस। मां स्पृष्ट थाय छ (सेसं तं चेव जाव पंचिंदिया विशेष यापत् पांय याचा ५५ (एवं नेरइए वि) से प्रारे ना२४ ५९५ (गवर) विशेष (आयामेण जहणेण साइरेग जोयणसहस्स) भाभा अन्य xiss अधिः ॥२ योगन (उक्कोसेण असंखेज्जाई जोयणाई) Grve असभ्यात योरन (एगदिसिं) से हशमां (एवइए खेत्ते अफुण्णे) मेटा क्षेत्र पुरित थाय छे (एवइए खेत्ते फुडे) सेवा क्षेत्र स्पृष्ट थाय छ (विग्गहेण एगसमइएण वा दुसमइएण वा तिसमइएण या) मे समयना, मे समयना २२१ र समयना विग्रहथी (णयर) विशेष (चउस. मइएण वा न भण्णइ) या२ समयना विडयी न हे (सेसं त चेय जाय पंचकिरिया वि) શેષ તેજ યાવત્ પંચ કિયાવાળા પણ
(असुरकुमारस्स जहा जीवपए) मसुमा२नु ४थन ७१ पहना समान (णवर विग्गहो
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫