Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्रे वैवातिव्रज्य तिष्ठन्ति, उष्णा वा पुद्गलाः उष्णं प्राप्य उप्णश्चैवातिव्रज्य तिष्ठन्ति, एवमेव ते देवस्ताभिरप्सरोभिः साद्धे कायपरिचारणे कृते सति तद इच्छामनः क्षिप्रमेव अपेति ॥९० ३॥
टीका-अथ शब्दादि विषयोपभोगरूप परिचारणा प्ररूपयितमाह -- 'देवा गं भंते ! कि सदेवीया सपरियारा, सदेवीया अपरियारा, अदेवीया सपरियाग, अदेवीया अपरियारा ?' हे भदन्त ! देवाः खलु किं सदेवीकाः सपरिचाराः-शब्दादि विषयोपभोगवर्जिता, भवन्ति ? अथवा सदेवीकाः अपरिचाराः-शब्दादि विषयोपभोगवन्तो भवन्ति ? किं वा देवाः अदे. वीका अपरिचारा भवन्ति ? भगवानाह-'गोयमा !' हे गौतम ! 'अत्थेगइया देवा सदेवीया करेंति) कायपरिचारणा करते हैं (से) अथ (जहाणामए सीया पुग्गला) जैसे शीत पुद्गल (सीयं पपप सीयं चेव अहवइत्ताणं चिट्ठति) शीतस्वभाववाले प्राणी को प्राप्त होकर शीतत्व को पाकर रहते हैं (उसिणा वा पोग्गला उमिणं पप्प उसिणं चेव अश्वत्ताणं चिटुंति) अथवा उष्ण पुद्गल उष्ण स्वभावधाले प्राणी को प्राप्त कर उष्णता को पाकर रहते हैं (एवमेव) इसी प्रकार तेहिं देवेहिं) उन देवों द्वारा (ताहिं अच्छराहि सद्धि) उन अप्सराओं के साथ (काय. परियारणं कए समाणे) काय से परिचारणा करने पर (से इच्छामणे खिप्पामेव अवेइ) उनका इच्छामन शीघ्र ही हट जाता है-तृप्त हो जाता है । ।सू० ३।
टीकार्थ-अब विषय सेवन रूप परिचारणा की प्ररूपणा करने के लिए कहते हैं
गौतमस्वामी-हे भगवन् ! देव क्या सदेवीक (देवियों सहित) और सपरिचार (मैथुन सेवन सहित) होते हैं ? अथवा सदेवीक और परिचार रहित होते हैं ? अथवा अदेवीक (देवीयों से रहित) और सपरिचार होते हैं ? अथवा क्या अदेवीक और अपरिचार होते हैं ?
(तएणं ते देवा ताहि अच्छराहिं सद्धि) त्यारे ते हेवे। ते २५५सायानी साथै (कायपरियारण करें ति) ४ायपश्यिा२६॥ ४३ छ (से) A५ (जहाणामए सीया पुग्गला) सेभ शीत पुस (सीयं पप्प सियं चेव अइवइत्ताणं चिदंति) शीत समावाणा प्राणीने प्रात ४२ शीता नवी राणे छ (उसिणा वा पोग्गला उसिणं पप्प उसिण चेत्र अइवइत्ताणं चिटुंति) मा १५ पुस GEY 218144100 प्रीने प्राप्त शa Segal भवी २४ छ (एवमेव) मारते (तेहि देवेहि) ते वे द्वारा (ताहि अच्छराहिं सद्धि) ते अप्सरा मेनी साथे (कायपरियारणं कए समाणे) यात्री परिया२७॥ ४२वाथी (से इच्छामणे खिप्पामेव अवेइ) तेभनुन्छामान हीथी 13 14 छ तृप्त / onय छे. ॥सू० ॥
ટીકાર્થ –હવે વિષયસેવન રૂપ પરિચારણાની પ્રરૂપણ કરવા કહે છે
ગૌતમસ્વામી–હે ભગવન્! દેવ શું સદેવિક દેવીઓ સહિત) અને સપરિયાર (મૈથુન સેવન સહિત) હોય છે? અથવા સદેવિક અને મિથુન રહિત હોય છે અથવા અદેવક અને અપરિચાર હોય છે ?
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫