Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रयमेवोधिनी टीका पद ३६ सू० ७ नैरयिकसमुद्घातनिरूपणम् _ गौतम ! न सन्ति, एवं यावद वैमानिकत्वे, नवरं मनुष्यावे अतीता न सन्ति, पुरस्कृता असंख्येयाः, एवं यावद् वैमानिकाः, नवरं वनस्पतिकायिकानां मनुष्यत्वे अतीता न सन्ति, पुरस्कृता अनन्ताः मनुष्याणां मनुष्यत्वे अतीताः स्यात् सन्ति स्यात् न सन्ति, यदा सन्ति जघन्येन एको वा द्वौ वा त्रयो वा, उत्कृष्टेन शतपृथक्वम् किषन्तः पु स्कृताः ? गौतम ! स्थात् संख्येयाः, स्याद् असंख्येयाः, एवमेते चतुर्विंशतिश्चतुर्विंशकाः दण्डकाः सर्वे पृच्छया भणितव्यः, यावद् वैमानिकानां वैमानिकत्वे ।। मू०७ ॥ नारकों के नारक अवस्था में अतीत केवलिसमुद्घात कितने ? (गोधमा ! नस्थि) हे गौतम ! नहीं हैं (केवइया पुरेक्खडा) भावी कितने ? (गोयमा! नत्थि) हे गौतम ! नहीं हैं (एवं जाव वेमाणियत्ते) इसी प्रकार यावत् वैमानिक-अवस्था में (नवरं मणूसत्ते अतीता णस्थि) विशेष-मनुष्य अवस्था में अतीत नहीं है (पुरेक्खडा असंखेजा) भावी असंख्यात हैं (एवं जाव वेमाणियत्ते) इसी प्रकार यावत् वैमानिक पर्यन्त (नवरं वणस्सइकाइयाणं मणूसत्ते अतीता नस्थि) विशेष वनस्पतिकायिकों के मनुष्यपर्याय में रहते हुए अतील नहीं है (पुरेक्खडा अणता) भावी अनन्त (मणूसाणं मणूसत्ते सिय अस्थि, सिघ त्थि) मनुष्यों के मनुष्य पर्याय में कदाचित् हैं, कदाचित् नहीं (जह अस्थि जहण्णेणं एको वा दो वा तिष्णि वा) यदि हैं, जघन्य एक या दो या तीन (उकोसेणं सतपुहत्तं) उस्कृष्ट दो सौ से नौ सौ तक (केवइया पुरेक्खडा) भावी कितने हैं ? (गोयमा! सिय संखेजा, सिय असंखेज्जा) कदाचित् संख्यात, कदाचितू असंख्यात (एवं एए चउव्वीसं च उबीसा दंडगा) इस प्रकार ये चौवीस चौवीस दडक हैं (सव्वे) सब (पुच्छाए) प्रश्न के अनुसार (भाणियचा) कहने चाहिए (जाव वेमाणियाणं वेमाणियत्त) ना२४ २५वस्थामा अतीत मुद्धात ८॥ १ (गोयमा ! नत्थि) 3 गौतम! नथी. (केवइया पुरेक्खडा) नापी ३८ ? (गोयमा! नत्थि) गौतम ! नथी.
(एवं जाव वामणियत्ते) मे ४१२ यात वैमानि Aथामा (नवर मणूसत्ते अतीता नथि) विशेष-मनुष्य २५१स्थामा मतीत नथी (पुरेक्खडा असंखेज्जा) मापी मस: ज्यात (एव जाव वेमाणियत्ते) मे ४ारे वैमानि (नवर वणस्सइकाइयाण मणूसत्ते अतीता नत्थि) विशेष-वन-५तियिोन भनुष्य पर्यायमा रहेता छतi मतात नथा (पुरेक्खडा अणता) भावी सनन्त छ. (मणूसाण मणूसत्ते सिय अस्थि, सिय णत्थि) मनुष्याना मनुष्यपर्यायां हाथित् छे ४ायित् नथी (जइ अस्थि जहण्णेण एको वा दो वा तिण्णि वा) ने छ. ४धन्य ४ मे १२ (उक्कोसेणं सतपुहुत्तं) Yष्ट मसे थी नसे सुधा (केवइया पुरेक्खडा) मावी डेटा ? (गोयमा ! सिय संखेज्जो, सिय असंखेज्ना) गौतम ! ४यित् सध्यात, हथित् मसभ्यात (एवं एए चउव्वीसं चउव्वीसा दंडगा) से प्रारे या यावीस यावीस ६४ (सव्वे) मया (पुच्छाए) प्रश्नना मनुसार (भाणियचा) ४२१ मे
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫