Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्रे चित्र सन्ति, यस्य सन्ति एकोत्तरम् , वान व्यन्तरत्वे यथा नैरयिकत्वे, ज्योतिष्क वैमानिकत्वे थतीता अनन्ताः, पुरस्कृताः कस्यचित् सन्ति कस्यचिन्न सन्ति, यस्य सन्ति स्थाद् असं. ख्येयाः, स्याद् अनन्ताः, एवम्-यावद् मनुष्यत्वेऽपि ज्ञातव्यम् , वानव्यन्तरज्योतिष्कवैमानिका यथा असुरकुमाराः, नवरं स्वस्थाने एकोत्तरेण भणितव्यं यावद वैमानिकस्य वैमानिकर, एवमेने चतुर्विंशतिश्चतुर्विंशका दण्डकाः ॥ सू० ५ ॥
मणूसत्ते) पृथिवीकायिक के पृथिवीकायिक-अवस्था में यावत् मनुष्य-अवस्था में (अतीता अणंता) अतीत अनन्त हैं (पुरेक्खडा कस्सह अस्थि, कस्सइ नस्थि) भावि किसी के हैं, किसी के नहीं (जस्स अस्थि एगुत्तरिया) जिसके हैं, एक से लगाकर (वाणमंतरत्ते जहा नेरइयत्ते) वानव्यन्तर अवस्था में नारक-अवस्था के समान (जोइसियवेमाणियत्त) ज्योतिष्क और वैमानिक अवस्था में (अतीता अर्णता) अतीत अनन्त हैं (पुरेक्खडा कस्सइ अस्थि) किसी के हैं (कस्सइ नत्थि) किसी के नहीं (जस्स अस्थि सिय असंखेज्जा सिय अणंता) जिस के हैं, उसके स्यात् असंख्यात, स्यात् अनन्त (एवं जाव मणूसत्ते विनेयवं) इसी प्रकार यावत् मनुष्यत्व में भी समझना चाहिए (वाणमंतरजोइसियवेमाणिया जहा असुरकुमारा) वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक, असुरकुमारों के समान (णवरं) विशेष (सहाणे) स्वस्थान में (एगुत्तरियाए भाणियब्वे) एक से लगाकर कहने चाहिए (जाव वेमाणियस्स वेमाणियत्ते) यावत् वैमानिक के वैमानिक पर्याय में (एवं एए चउव्वीसं चउवीसा दंडगा) इस प्रकार ये चौबीस के चौबीस दंडक हैं। सू०५॥
यावत मनुष्य अवस्थामा (अतीता अणंता) मतीत मनन्त (पुरेक्खडा कस्सइ अत्थि, कस्सइ नत्थि) भावी ना छ, अनि नथी (जस्स अस्थि एगुत्तरीयाए) ना छ, मेथी આરંભીને.
(वाणमंतरत्ते जहा नेरइयत्ते) पानयन्त२ ५१२५मा ना२४१२थानी समान (जोइसिय वेमाणियत्ते) या त मन भनि मस्यामा (अतीता अणंता) मतीत मनन्त (पुरेक्खडा कस्सइ अत्थि, कस्सइ उत्थि) । छे, ना नयी (जस्स अत्यि सिय असंखेम्जा, सिय अणता) ना छे तना स्यात् सध्या1 स्यात् अनन्त (एवं जाव मणूसत्ते वि नेयव्वं) मे रे यावत् मनुष्यस्वभा ५९ समन्यु नेय (वाणमंतरजोइसियवेमाणिया जहा असुरकुमारा) पान०यन्त२, याति०४, पैमानि४, ससुभाना समान (नवर) विशेष (सट्टाणे) स्वस्थानमा (एगुत्तरियाए भाणियव्वे) मेथी बने 34 मध्ये (जाव वेमाणियस्स वेमाणियत्ते) यावत् वैमानिना वैमा न पर्यायभा (एवं एए चव्वीसं चवीसा दंडगा) से प्रहारे मा योवीसना यावीस ६४ छ. ॥सू० ५॥
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫