Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
प्रय मे बोधिनी टीका पद ३५ सू० २ प्रकारान्तरेण वेदनानिरूपणम् वेदनां वेदयन्ते, वानव्यन्तरज्योतिष्कवैमानिका यथा नैरयिकाः, कतिविधा खलु भदन्त ! वेदना प्रशता ? गौतम ! द्विविधा वेदना प्रज्ञप्ता, तद्यथा-निदा च अनिदा च, नैरयिकाः खलु भदन्त ! किं निदाश्च वेदनां वेदयन्ते, अनिदाश्च वेदनां वेदयन्ते ? गौतम ! निदाश्चापि वेदनां वेदयन्ते, अनिदाश्चापि वेदनां वेदयन्ते, तत्केनार्थेन भदन्त ! एव. मुच्यते-नरयिका निदाश्चापि अनिदाश्चापि वेदनां वेदयन्ते ? गौतम ! नैरयिका द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-संज्ञिभूताच असंज्ञिभूताश्च, तब खलु थे अमी संज्ञिभूतास्ते खलु की वेदना घेदते हैं (वाणमंतरजोइसियवेमाणिया जहा नेरइया) वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक नारकों के समान ।
(कविता भंते ! वेयणा पण्णत्ता ?) हे भगवन् कितने प्रकार की वेदना कही है ? (गोयमा ! दुविहा वेयणा पण्णत्ता) हे गौतम ! दो प्रकार की वेदना कही है (तं जहा) वह इस प्रकार (निदा य अणिदा य) निदा ध्यानयुक्त और अनिदा-ध्यान रहित (नेरइया णं भंते ! किं निदायं वेयणं वेदेति ?) हे भगवन् ! नारक क्या निदा वेदना वेदते हैं ? (अणिदायं वेयणं वेदेति ?) या अनिदा वेदना वेदते हैं ? (गोयमा ! निदायं वि वेयणं वदंति, अणिदायं वि वेयणं वेदेति) हे गौतम ! निदा वेदना भी वेदते हैं, अनिदा वेदना भी वेदते हैं (से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ- नेरइया निदायं वि अणिदायं विवेयण वेदेति ?) हे भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि नारक निदा भी और अनिदा भी वेदना वेदते हैं ? (गोयमा ! नेरइया दुविहा पण्णत्ता) हे गौतम ! नारक दो प्रकार के हैं (तं जहा-सण्णिभूया य असण्णिभूया य) वे इस प्रकार संज्ञिभूत अनुभव छ. (वाणमंतरजोइसियवेमाणिया जहा जेरइया) वानव्य त२, योनि । मन वैमानि), नारनी भ.
(कइविहाण' भंते ! वेयणा पण्णत्ता १) मन ! वहन ट। अनी ही छ ? (गोयमा दुविहा वेयणा पण्णत्ता) हे गौतम ! मे प्रारी वेदना ४९७ छ. (त जहा) ते २॥ प्रमाणे (निदा य, अणिदा य) निहा-ध्यानयुक्त ने मनिह ध्यानाहित.
(नेरइयाण भंते ! किं निदाय वेयण वेदेति) भगवान ! ना२४ शुनिह ना हेछ. ? (अणिदाय वेयण वेदेति ?) शुगनिहा वन वे छ १ (गोयमा ! निदायपि वेयणं वेदेति, अणिदायपि वेयण वेदेति) 8 गौतम ! निहा वहना ५९मने मनिहा वहनी ५ अनुभव छ. (से केणद्वेण भंते ! एवं वुच्चइ-नेरइया निदायपि अणिदायंपि वेयण वेदेति ?) हे भवान ! या हेतुथी से वायु छ , ना२४ नि भने भनिहा वहन पर शव छ ? (गोयमा ! नेरइया दुविहा पण्णता) हे गौतम! ना। मे प्रान छ (त जहा सणिभूया य असण्णीभूया य, ते ॥ ४२ छ-सज्ञी भूत અને અસંજ્ઞી ભૂત.
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫