Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्रे ॥ चतुस्त्रिंशत्तमं प्रवीचारपरिणामाख्यं पदम् ॥
संग्रहगाथा द्वयम्मूलम्-अणंतरंगयाहारे१, आहारे भोयणाइ य २ । पोग्गला नेव जाणंति ३ अज्झवसाणा य ४ आहिया ॥१॥ सम्मत्तस्साहिगमे ५ तत्तो परियारणा य ६ बोद्धवा । काए फासे रूवे सद्दे य मणे य अप्पबहुं ॥२॥
छाया-अनन्तरागताहारकः १, आहारा भोगता दिश्च २, पुद्गलान नैव जानन्ति ३, अध्यवसानानि चाख्यातानि ४ ॥१॥ सम्यक्त्वस्याधिगमः ५ ततः परिचारणा ६ च बोद्धव्या । काये स्पर्श रूपे शब्दे च मनसि चाला बहु ॥२॥
टीका-त्रयस्त्रिंशत्तमे पदे ज्ञानपरिणामविशेषरूपोऽवधिः प्ररूपितः सम्प्रति चतुस्त्रिशत्तमे पदे वेदपरिणामविशेषरूपं प्रवीचारं प्ररूपयितुं प्रथमं निखिलवक्तव्यता संग्राहक गाथाद्वयमाह-'अणंतगयाहारे १, आहारे भोयणाइ य २, पोग्गला व जाणंति ३, अज्झ
चौतीसवां प्रवीचार परिणामपद
संग्रह गाथा शब्दार्थ-(अणंतरगयाहारे) अनन्तरागत-आहारक (आहारे भोयणाइ य) आहाराभोगता आदि (पोग्गला) पुद्गलों को (नेव) नही (जाणंति) जानते (अज्झ. वसाणा) अध्यवमान (य) और (आहिया) कहे हैं ॥१॥ (सम्मत्तस्साहिगमे) समकित का अधिगम (तत्तो) तत्पश्चात् (परियारणा) परिचारणा (य) और (बोद्धव्वा) जाननी चाहिए (काए) काय में (फासे) स्पर्श में (रूवे) रूप में (सद्देय) और शब्द में (मणे य) और मन में (अप्परहुं) अल्प बहुत्व गा० २॥
टीकार्थ-तेतीसवें पद में ज्ञान के विशेष परिणाम अवधि का निरूपण किया गया, अब चौतीसवें पद वेद परिणाम रूप प्रवीचार की प्ररूपणा करने के लिए प्रथम समस्त वक्तव्यता का संग्रह करने वाली दो गाथाएं कहते हैं-(१)
सड गाया :At :-(अणंतरगयाहारे) मनन्त२॥1 08.२४. (आहारे भोयणाइय) माहारलगता छे, म (पागल्ला) सोना (नेव) नही (जाणंति) तणे (अज्झवसाणा) अध्यक्सानी (य) मन (आहिया) ४ा छ ॥१॥
(सम्मतस्साहिगमे) समतिनी मधिसभ (तत्तो) तत्पश्चात् (परियारण) परियार। (य) सन (बोद्धव्वा) तीन (काए) ४यमा (फासे) २५vi (रूवे) ३५i (सद्देय) मन शमा (मणेय) मने मनमा (अप्पबहु) २५८५ मत्व ॥२॥
ટકાઈ -તેત્રીસમાં પદમાં જ્ઞાનના વિશેષ પરિણામ અવધિનું નિરૂપણ કરાયું.
હવે ચિત્રીસમા પદમાં વેદ પરિણામ રૂપ પ્રવીચારની પ્રરૂપણા કરવાને માટે પ્રથમ સમસ્ત વક્તવ્યતાને સંગ્રહ કરનારી બે ગાથાઓ કહે છે–
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫