Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्रे णामनम्, ततः परिचारणा ततो विकुर्वणा ? हन्त ! गौतम ! तच्चैव यावत् परिचारणा, नो चैव खलु चिकुर्वणा एवं यावच्चतुरिन्द्रियाः, नवरम् वायुकायिकाः पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिका मनुष्याश्च यथा नैरयिकाः, वानव्यन्तरज्योतिष्कवैमानिका यथा असुरकुमाराः ॥२०१॥
टोका-अथोद्देशानुसारेण प्रथमम् अनन्तरागताहारवक्तव्यता मधिकृत्य प्ररूपयितुमाह'नेरइया गं भंते ! अणंतराहारा, ततो निव्वत्तणा, ततो परियाइणया ततो परिणामया ततो परियारणया तओ पच्छा विउव्वणया ?' हे भदन्त ! नैरयिकाः खलु किम् अनन्तराहारा:प्रथमम् अनन्तरागताः सन्त एव आहारकाः उत्पत्तिक्षेत्रप्राप्ति समय एवाहारयन्तीत्यनन्तराहारास्तथाविधा भवन्ति ? ततः-अनन्तराहारग्रहणानन्तरं किं निर्वर्तना-शरीरस्य निष्पत्ति त्तणया) फिर निर्वर्तना वाले (तो परियाइणया) फिर पर्यादान वाले (तओ परिणामया) फिर परिणामना वाले (तओ परियारणया) फिर परिचारणावाले (तओ विउवणया) फिर विकुर्वणावाले होते हैं ? (हंता गोयमा !) हाँ, गौतम ! (तं चेव) ऐसा ही (जाव परियारणा)परिचारणा तक (नो चेवणं विउधणा) विकु. प्रणा नहीं (एवं जाव चउरि दिया) इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय (नवरं) विशेष (वाउकाइया पचिंदियतिरिक्खजोणिया मणूसा य जहाँ नेरइया) वायुकायिक, पंचेन्द्रियतिर्यंच और मनुष्य नारकों के समान (वाणमंतरजोइसियवेमाणिया जहा असुरकुमारा) वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक जैसे असुरकुमार ॥सू. १॥
टीकार्थ-अब संग्रहणीगाथाओं में कथित क्रम के अनुसार अनन्तरागताहार वक्तव्यता को लेकर प्रतिपादन करते हैं।
गौतमस्वामी-हे भगवन् ! नारक जीव क्या अनन्तराहार होते हैं ? अर्थात् क्या उत्पत्तिक्षेत्र में प्राप्त होते हो, समय के व्यवधान के बिना ही आहार करते हैं ? फिर अनन्तराहार ग्रहण के पश्चात् क्या शरीर की निर्वर्तना अर्थात् विउव्वणया) पछी
विडोय छ ? (हंता गोयमा !) ७, गौतम ! (तंचेव) सेवा (जाव परियारणा) परियार । सुधी (नोचेव णं विउव्वणा) विgg नही (एवं जाव चउरिदिया) मे रे यावत् यतु३न्द्रिय (नवरं) विशेष (वाउकाइया पंचिंदियतिरिक्खजोणिया मणूसा य जहा नेरइया) वायु४।यित्र पथन्द्रिय तिय य म मनुष्य नारानी समान (वाणमंतरजोइसियवेमाणिया जहा असुरकुमारा) पानयन्त२, ज्योति भने पैमानिअसु२मा२. ॥सू० १॥
ટીકાર્થ:-હવે સંગ્રહણી ગાથાઓમાં કથિત ક્રમાનુસાર પ્રથમ અનન્તરાગતાહાર વક્તવ્યતાને લઈને પ્રતિપાદન કરે છે
શ્રી ગૌતમસ્વામી-હે ભગવન નારક જીવ શું અનન્તરાહાર હોય છે? અર્થાત્ શું ઉત્પત્તિ ક્ષેત્રમાં પ્રાપ્ત થતાં જ સમયના વ્યવધાન સિવાય જ આહાર કરે છે? પછી
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫