Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमैयबोधिनी टीका पद ३४ सू० २ नैरयिकादीनामाहारविषयकाभोगादिनिरूपणम् ८२९ केनायेंन भदन्त ! एवमुच्यते-वैमानिका अस्त्येके जानन्ति पश्यन्ति आहारयन्ति, अस्त्ये के न जानन्ति न पश्यन्ति आहारयन्ति ? गौतम ! वैमानिका द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-मायि मिथ्यादृष्ट्युपपत्रकाच अमायि सम्यग्दृष्टयुपपन्नकाच, एवं यथा इन्द्रियोद्देशके प्रथमे भणितं तथा भणितव्यं यावत् तत् एतेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते०, नैरयिकाणां भदन्त ! कियन्ति अध्यवसानानि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! असंख्येयानि अध्यवसानानि, तानि खलु भदन्त ! किं अत्थेगड्या जाणति पासंति आहारेंति) हे गौतम ! कोई-कोई जानते, देखते, आहार करते हैं (अत्थेगइया न जाणंति, न पासंति, आहारैति) कोई-कोई नहीं जानते, नहीं देखते, आहार करते हैं (से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चई) हे भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि (वेमाणिया अत्थेगइया जाणंति पासंति
आहारेंति, अत्थेगड्या न जाणंति, न पासंति आहारेति ?) कोई वैमानिक जानते, देखते और आहार करते हैं, कोई नहीं जानते, नहीं देखते, आहार करते हैं (गोयमा ! वेमाणिया दुविहा पण्णत्ता) हे गौतम ! वैमानिक दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (माई मिच्छद्दिष्टि उघवन्नगाय अमाईसम्मदिष्टि उवधभगाय) मायी मिथ्यादृष्टि उपपन्नक और अमापी सम्यग्दृष्टि-उपपन्नक (एवं) इस प्रकार (जहा इंदिय उद्देसए पढमे भणितं) जैसा प्रथम इन्द्रिय-उद्देशक में कहा है (तहा भाणिय) वैसा कह लेना चाहिए (जाव से एएणटेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ) यावत् इस हेतु से हे गौतम ! कहा जाता है।
(नेरइयाणं भंते ! केवइया अज्झवलाणा पण्णत्ता) हे भगवन् ! नरयिकों के अध्यवसान कितने कहे हैं ? (गोयमा! असंखेजा अज्झवसाणा) हे गौतम !
आहारे ति) 3 गौतम ! - ... हुणे छे तेभर २९२ ४२ छ (अत्थेगइया न जाणंति न पासंति, आहारे ति) - नथी Megal नया टेमता २ ४२ छे.
___ (से केणट्रेणं भंते ! एवं वुच्चइ) 8 भगवन् ! २॥ तुथी मेम ४उपाय छ । (वेमाणिया अत्थेगइया जाणंति पासंति आहारेति, अत्थेगइया न जाणंति न पासंति आहारे ति) કઈ વૈમાનિક જાણે–દેખે અને આહાર કરે છે, કેઈ નથી જાણતા નથી દેખતા आहार ४२ छ ?
(गोयमा ! वेमाणिया दुविहा पण्णत्त) 8 गौतम ! वैमानि मे ४२नी ४ा छ (तं जहा) ते॥ २॥ पारे छ (माईमिच्छाद्दिवी उववन्नगाय अमाईसम्मदिट्ठी लववन्नगाय) માથમિથ્યાદષ્ટિ ઉપપનક, અને અમાયી સમ્યગ્દષ્ટિ ઉ૫પનક (પર્વ) એ પ્રકારે (TET इंदियउद्देसए पढमे भणियं) 24। प्रथम न्द्रिय उदेशमा ४थुछ (तहा भाणियव्वं) तर हे मे (जाव से एएणद्वेण गोयमा एवं वुचइ) यावत् मे हेतुथी गौतम ! सेवाय छे.
(नेरइयाण' भंते ! केवइया अज्झवसाणा पण्णत्ता ?) मापन ! नबिछीना मध्यq. साय डेटा हा छ ? (गोयमा ! असंखेज्जा अज्झवसाणा) गौतम! मसभ्यात मध्य
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫