Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका पद २३ सू० ११ एकेन्द्रियकर्मप्रकृतिस्थितिपरिमाणनिरूपणम् ३८७ तंचे परिपूर्ण बध्नन्ति, एकेन्द्रियाः नपुंसकवेदस्य कर्मणो जघन्येन सागरोपमस्य द्वौ सप्तभागी पल्योपमस्यासंख्येय भागोनी, उत्कृटेन तेचैव परिपूर्णी बन्धन्ति, हास्यरती यथा पुरुषवेदस्य, अरतिभयशोकजुगुप्सानां यथा नपुंसकवेदस्य, नैरयिकायुष्यं देवायुष्यञ्च निरयगतिनाम देवगति. नाम वैक्रियशरीरनाम भाहारकशरीरनाम नैरयिकानुपूर्वी नाम देवानुपूर्वीनाम तीर्थंकरनाम एतानि पलिओवमस्स असंखेजइभागेणं ऊणयं) एकेन्द्रिय जीव पुरुषवेद का जघन्य पल्योपम का असंख्यातयां भाग कम सागरोपम का भाग बांधते हैं (उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति) उत्कृष्ट वही भाग पूरा बांधते हैं (एगिदिया नपुंसगवेदस्स कम्मस्स जहाणेणं सागरोवमस्स दो सत्तभागे, पलिओवमस्स असंखे. जइभागेणं ऊणए) एकेन्द्रिय नपुंसक वेद कर्म को जघन्य पल्योपम का असंख्यातवां भाग कम सागरोपम का भाग बांधते हैं (उकोसेणं तं चेच पडिपुणं बंधंति) उत्कृष्ट वही भाग पूरे बांधते हैं (हासरईए जहां पुरिसवेयस्स) हास्य और रति का पुरुषवेद के समान (अरतिभयसोगदुगुंछाए) अरति, भय, शोक और जुगुप्सा का (जहा नपुंसगबेयस्स) नपुंसक वेद की तरह।
(नेरइयाऊय) नरकायु (देवाऊय) और देवायु (निरयगतिनाम) नरकगतिनामकर्म (देवगतिनाम) देवगतिनामकर्म (वे उब्वियसरीर नाम) वैक्रियशरीर नाम (आहारगसरीरनाम) आहारकशरीर नामकर्म (नेरइयाणुपुग्विनाम) नरकानुपूर्वी नामकर्म (देवाणुपुब्धीनाम) देवानुपूर्वी नामकर्म (तित्थयरणाम) तीर्थसमान छ, (एगिदिया पुरिसवेयस्स कम्मस्स जहण्णेणं सागरोवमस्स एग सत्तभाग, पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणयं)-सेन्द्रिय ७१ पुरुषवेहने। म ४३न्यथी, पक्ष्योपभनी असण्यातमी भाग मेछ। सेवा सागरे।५मना से समांशमा मधे छ (उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधति)-3कृष्ट थी, तट ४ अर्थात मानी पूरेपूरी स्थिति मधे छ.
(एगिदिया नपुंसगवेदस्स कम्मस्स जहण्णेणं सागरावमस्स दो सत्तभागे, पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणए)-मेन्द्रिय ७५ नघुस पे भने, धन्यथी, पक्ष्योपभने। अस. भ्यातभा मा माछा मेय। सा५मना मे सप्तभांश २ मा मधे छे. (उक्कोसेणं तं चैव पडिपुण्णं बंधति)-कृष्टथी, ते २५ मांधे छे.
(हासरइए जहा पुरिसवेयस्स)-हास्य भने २तिन। मध पुरुषपेह मधनी समान छ.
(अरतिभयसोगदुगुंछाए जहा नपुंसगवेयस्स)-मति, भय, । भने शुसाना म નપુંસક વેદના બંધની સમાન જાણે.
(नेरइयाऊ य)-२४ायु (देवाऊ य) हेपायु (निरय गति नाम) २यि४-२४ी गति नाम भ (देवगतिनाम) हेपत नाम:म, (वेउव्वियसरीरनाम) वैठिय शरीर नाम:म (आहार गसरीरनाम)-माह।२४ शरीर नाम (नेरइयाणुपुबीनाम)-२४नुपूी नाममः, (देवाण. पुचीनाम)-हेवानुषी नामभ, (तित्थयरणाम)-तीय ४२ नाभी , (एयाणि णव पदानि
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫