Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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____ प्रज्ञापनासूत्र र्थेन गौतम ! एवमुच्यते. एवं यावच्चतुरिन्द्रियाः, नवरं चक्षुर्दर्शनमभ्यधिकं चतुरिन्द्रियाणामिति, पश्चन्द्रियतिर्यग्योनिका यथा नैरयिकाः, मनुष्या यथा जीवाः, वानव्यन्तरज्यो. निष्कवैमानिका यथा नैरयिकाः। प्रज्ञापनायां भगवायाम् एकोनत्रिंशत्तमम् उपयोगपदं समाप्तम् । सू०१॥ ___टीका-अष्टाविंशतितमे पदे गतिपरिणामविशेषरूप आहारपरिणामः प्रतिपादितः सम्पति-एकोनत्रिंशत्तमे पदे ज्ञानपरिणामविशेषरूपमुपयोगं प्ररूपयितुमाह-'कइविहेणं भंते ! उवोगे पण्णते?' हे भदन्त ! कतिविधः कति प्रकारका बिलु उपयोगः-ज्ञानपरिणामविशेष: प्रज्ञप्तः ? भगवानाह -'गोयमा !' हे गौतम ! 'दुविहे उपभोगे पण्णत्ते' द्विविध उपयोगः प्रज्ञप्तः, 'तं जहा सागारोवओगे य अणागारोवओगे य' तद्यश साकारोपयोगश्च अनाकारोपअनाकारोपयुक्त है (से तेणटेणं गोयमा ! एवं बुच्चई) हे गौतम ! इस कारण ऐसा कहा गया है (एवं जाय चउरिदिया) इसी प्रकार यावत् चौइन्द्रिय (णवरं चक्खुदंसणं अमहियं चरिंदियाणं ति) विशेष चौइन्द्रियों में चक्षुदर्शन अधिक कहना (पंचिंदिय तिरिक्खजोणिया जहा नेरइया) पश्चेन्द्रिय तिर्यंच नारकों के समान (मणूसा जहा जीवा) मनुष्य जैसे जीव (चाणमंतरजोइसियवैमाणिया जहा नेरइया) वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक, नारकों के समान कहे हैं ।सू. १॥
उपयोगपद समाप्त टीकार्थ-अट्ठाईसवें पद में गतिपरिणाम विशेष रूप आहार परिणाम का प्रतिपादन किया गया, अब उनतीसवें पद में ज्ञान के परिणाम विशेष उपयोग की प्ररूपणा की जाती है
गौतमस्वामी-प्रश्न करते हैं-हे भगवन् ! उपयोग कितने प्रकार का कहा गया है
भगवान्-हे गौतम ! उपयोग दो प्रकार का कहा गया है, यथा-साकारोछ (जेणं बेइंदिया अचक्खुदंसणोवउत्ता तेणं अणागारोवउत्ता) 0 दीन्द्रियो भयनशाना५युत छ, तेसो मनायुत छ (से तेणढणं गोयमा ! एवं वुच्चइ) गौतम ! मे ४२४ो सेम डे छ (एवं जाव चउरिंदिया) मे२४ ४ारे यावत् यतुरिन्द्रिय (णवरं चक्खुदसणं अमहियं चउरिंदियाणं त्ति) विशेष-यतुहिन्द्रियामां यशन अधि४ ४ (पंचिंदियतिरिक्खजोणिया जहा नेरइया) ५येन्द्रिय तिय य नारीना समान (मणूमा जहा जीवा) भनुष्य २५॥ ०५ ( वाणमंतरजोइसियवेमाणिया जहा नेरइया) पानव्य-त२, ज्योति અને વિમાનિકે નારકોની સમાને સમજવા સૂ૦ ૧
ઉપગ પદ સમાપ્ત ટીકાથ–અઠયાવીસમાં પદમ ગતિ પરિણામ વિશેષ રૂપ આહાર પરિણામનું પ્રતિપાદન કરાયું. હવે ઓગણત્રીસમાં પદમાં જ્ઞાનના પરિણામ વિશેષની પ્રરૂપણ કરાય છે.
શ્રી ગૌતમસ્વામી પ્રશ્ન કરે છે- હે ભગવન્! ઉગયેગ કેટલા પ્રકારના કહેલા છે. શ્રી ભગવાન-હે ગૌતમ! ઉપયોગ બે પ્રકારના કહેલા છે, જેમ કે–સાકારો પગ
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫