Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका पद ३० सू०१ साकारानाकारपश्यन्तानिरूपणम् __ ७३७ तद्यथा-श्रुतज्ञान साकारपश्यन्ता, श्रुताज्ञानसाकारपश्यन्ता, 'एवं तेइंदियाण वि' एवम्द्वीन्द्रियाणामिव त्रीन्द्रियाणामपि साकारपश्यन्ता द्विविधा प्रज्ञप्ता, गौतमः पृच्छति-'चउरिदियाणं पुन्छा' चतुरिन्द्रियाणां कतिविधा पश्यन्ता प्रज्ञप्ता ? इति पृच्छा, भगवानाह'गोयमा ! हे गौतम ! 'दुविहा पण्णत्ता' चतुरिन्द्रियाणां द्विविधा पश्यन्ता प्रज्ञप्ता, 'तं जहासागारपासण या अणागारपासणया' तद्यथा-साकारपश्यन्ता अनाकारपश्यन्ता च, 'सागारपास गया जहा बेइंदियाणं' चतुरिन्द्रियाणां साकारपश्यन्ता यथा द्वीन्द्रियाणां द्विविधाप्रतिपादिता तथा प्रतिपत्तव्या, गौतमः पृच्छति-'चउरिदियाणं भंते ! अणागारपासणया कइविहा पण्णत्ता ?' हे भदन्त ! चतुरिन्द्रियाणाम् अनाकारपश्यन्ता कतिविधा प्रज्ञप्ता ? भगवानाह'गोयमा !' हे गौतम ! 'एगा चक्खुदंसण अणागारपासणया पणत्ता' एका चक्षुर्दर्शनानाकारपश्यन्ता प्रज्ञप्ता, 'मणूसाणं जहा जीवाणं' मनुष्याणां यथा जीवानां पश्यन्ता प्रतिपादिता तथा प्रतिपत्तव्या, 'सेसा जहा नेरइया जाय वेमाणि याणं' शेषाणाम्-उक्तातिरितानां यथा नैरयिकाणां पश्यन्ता उक्ता तथा वक्तव्या, यावत्-पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकवानयथा-श्रुतज्ञान साकार पश्यन्ता और श्रुताज्ञान साकार पश्यन्ता। इसी प्रकार त्रीन्द्रियों की साकार पश्यन्ता भी दो प्रकार की ही समझनी चाहिए।
गौतमस्यामी-हे भगवन् ! चतुरिन्द्रियों की पश्यन्ता कितने प्रकार की है ?
भावान-हे गौतम ! चतुरिन्द्रियों की पश्यन्ता दो प्रकार की कहीं हैं, यथा साकार पश्यन्ता और अनाकार पश्यन्ता । साकार पश्यन्ता दीन्द्रियों के समान समझलेनी चाहिए।
गौतमस्थामी-हे भगवन् ! चौइन्द्रियों की अनाकारपश्यन्ता कितने प्रकार की कही हैं ?
भगवान् हे गौतम ! चौइन्द्रियों को एक चक्षुदर्शन अनाकारपश्यन्ता कही है।
मनुष्यों की पश्यन्ता वैसी ही कहनी चाहिए जैसी जीवों की कही है। इन सब के सिवाय शेष जीयों की पश्यन्ता वैमानिकों तक नारकों के समान समझनी चाहिए । अर्थात् पंचेन्द्रियतिर्यचों, वानव्यन्तरों, ज्योतिष्कों और वैमाશ્રુતજ્ઞાન સાકાર પશ્યન્તા અને શ્રુતજ્ઞાન સાકાર પશ્યન્તા. એજ પ્રકારે ત્રીન્દ્રિયની સાકાર પશ્યન્તા પણ બે પ્રકારની જ સમજવી જોઈએ.
શ્રી ગૌતમપામી-હે ભગવન ! ચતુરિન્દ્રિયની પશ્યન્તા કેટલા પ્રકારની કહી છે?
શ્રીભગવાન-હે ગૌતમ! ચતુરિન્દ્રિાની પશ્યન્તા બે પ્રકારની કહી છે જેમ કે સાકાર પશ્યન્તા અને અનાકાર પશ્યન્તા, સાકાર પશ્યન્તા કીન્દ્રિયાની સમાન સમજી લેવી જોઈએ.
શ્રીગૌતમસ્વામી–હે ભગવન ! ચતુરિન્દ્રિયની અનાકાર પશ્યન્તા કેટલા પ્રકારની છે?
મનુષ્યની પશ્યન્તા એવી જ કહેવી જોઈએ કે જેવી જીવે ન કહી છે. આ બધાના સિવાય શેષ જીવોની પશ્યન્તી માનિક સુધી નારકની સમાન સમજવી જોઈએ અથત
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫