Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्रे असंयत नो संयतासंथता अपि, मनुष्याः खलु पृच्छा, गौतम ! मनुष्याः संयता अपि असंयता अपि संयतासंयता अपि, नो नोसंयतनोअसंयत नो संयतासंयमाः, चानच्यन्तरज्योतिष्कमानिका यथा नैरयिकाः, सिद्धाः खलु पृच्छा, गौतम ! सिद्धा नो संयताः१, नो असंयता:२, नो संयतासंयताः३, नो संयत नो असंयत नो संयतासंयताः ४ ॥ गाथा-'संयतासंयत मिश्रकाश्च जीवास्तथैव मनुष्याश्च । संयतरहिता स्तियश्चः शेषा असंयता भवन्ति ॥ सू० १ ॥
संयतपदं समाप्तम् ॥ ३२ ॥ संजया) संयत नहीं होते (असंजया वि) असयत भी होते हैं (संज यासंजया वि) संयतासंयत भी होते हैं (नो नोसंजय नो असंजय नो संजयासंजया वि) नो संयत-नो असंयत-नोसंतायतासश्त नहीं होते।।
(मणुस्साणं :पुच्छा ?) मनुष्यों सम्बन्धी प्रश्न ? (गोयमा! मणूसा) हे गौतम ! मनुष्य (संज या वि) संयत भी (असंजया थि) असंयत भी (संजयासंजया यि) संयतासंयत भी (नो नोसंयत-नो असंयत नो संयतासंयत) नो संयत-नो असंयत नो संयतासंयत नहीं होते हैं (वाणमंतरजोइसियवेमाणिया जही नेरइया) चाणव्यन्तर, ज्योतिक, वैमानिक नारकों के समान
(सिद्धाणं पुच्छा ?) सिद्धों संबंधी प्रश्न ? (गोयमा ! सिद्धा नो संयता) हे गौतम ! सिद्ध संयत नहीं (नो असंयता) असंयत नहीं (नो संयतासंयता) संयतासंयत नहीं (नो संयत नोअसंयत -नो संयतासंयता) चे नो संयत-नो असंयत-नो संयतासंयत होते हैं (संजय असंजय मीसगा य जीवा तहेव मणुया य) जीव और मनुष्य संयन, असंगत और मिश्र अर्थात् संयतासंयत होते हैं (संजय रहिया तिरिया) तिथंच संयत नहीं होते अर्थात् असंयत और संयतावि) असयत ५५ डा . (संजयासंजया वि) सतायत पार छ (नो नोसंजय नो असंजय नोसंजयासंजया वि) ना स4- मयत- सयायत नथी होता.
___ (मणुस्साणं पुच्छा ?) मनुथ्यो सधी प्रश्न ? (गोयमा ! मणूसा) गौतम ! मनुष्य (संजया वि) सयत ५g. (असंजया वि) २ d प (संजयासंजया वि) संपता सयत ५५५ (नो नो संजय-गो असंजय नो संजयासंजया वि) । संयत-नो ५सयत नौ सयता सयत नयी ता. (वाणमंतरजोइसियवेमाणिया जहा नेरइया) पाव्य-त२ ज्योति ४, વિમાનિક નારકોની સમાન.
(सिद्धाणं पुच्छा ?) सिद्धीसमधी प्रश्न (गोयमा! सिद्धा नो संजया) 0 गौतम ! सिद्ध संयत नथी (नो असंजथा) ५सयत नथी (नो संजयासंजया) स यतासयत थी. (नो संजय-नो असंजय-नो संजयासंजया) ते ना सयत नो असयत-नो यता सेयत डाय छे. (संजय असंजय मीसगा य जीवा, तहेव मणुसा य) ७५ भने मनुष्य संयत मने असयत मन मिश्र अर्थात् संयतासयत हाय छे. (संजयरह्यिा तिरिया !) तिय
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫