Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रबोधिनी टीका पद ३० सू० १ साकारानाकार पश्यन्तानिरूपणम्
नास्ति, एवं यावत् स्तनितकुमाराः पृथिवीकायिकानां पृच्छा, गौतम ! पृथिवीकायिकाः Harrasat at अनाकार पश्यन्तिनः, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवं मुच्यते ? गौतम ! पृथिवी कायिकानाम् एका श्रुताज्ञानसाकरिपश्यन्ता प्रज्ञप्ता, तत् तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यतेपृथिवीकायिकाः साकार पश्यन्तिनो नो अनाकार पश्यन्तिनः, एवं यावद् वनस्पतिकायिकानाम्, द्वन्द्रियाणां पृच्छा, गौतम ! साकारपश्यन्तिनः, नो अनाकारपश्यन्तिनः तत् केनार्थेन मदन्त ! एवमुन्यते ? गौतम ! द्वीन्द्रियाणां द्विविधा साकारपश्यन्ता प्रज्ञप्ता, तद्यथा- श्रुतज्ञान साकारबुच्चइ) विशेष साकार पश्यन्ता में मनःपर्यवज्ञानी और केवलज्ञानी नहीं कहे जाते (अणागारपासणवार केवलदंसणं नत्थि) अनाकार पश्यन्ता में केवलदर्शन नहीं है ( एवं जाव थनियकुमारा) इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार ।
( पुढिविकाइयाणं पुच्छा ?) पृथिवीकायिकों संबंधी प्रश्न ? (गोयमा ! पुढवि काइया सागारपस्सी, णो अणागारपस्सी) हे गौतम! पृथिवीकायिक साकार पश्यन्ता वाले हैं, अनाकार पश्यन्ता वाले नहीं (से केणद्वेणं मंते ! एवं बुचड्) हे भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा है ? (गोयमा ! पुढविकाइयाणं एगा सुय अण्णाण सागारपासणया पण्णत्ता) हे गौतम ! पृथिवोकायिकों की एक श्रुन अज्ञान साकार पश्यन्ता कही है (से तेणं गौतमा ! एवं बुच्चइ) इस हेतु से हे गौतम! ऐसा कहा जाता है ( एवं जाव वणस्सइकाइयाणं) इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिकों तक ।
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(aइंदियाणं पुच्छा ?) डीन्द्रियों सम्बन्धी प्रश्न ? (गोयमा ! सागारपस्सी, णो अणगारसी) हे गौतम! साकार पश्यन्ता वाले हैं अनाकार पश्यन्ता वाले नहीं (सेकेण्णणं भंते ! एवं बुच्चइ ) किस हेतु से हे भगवन् ! ऐसा कहा है ? (गोमा ! बेदियाणं दुबिहा सागारपामणा पण्णत्ता हे गौतम! द्वीन्द्रियों की
न्तामां मनःपर्यवज्ञानी ज्ञानी नयी वाता (अणागारपासणयार केवलदंसणं नत्थि ) अनाकार पश्यन्तासां देवदर्शन नथी ( एवं जाव थणियकुमारा) २०४४ यावत् स्तनितकुमार. (पुढविकाइयाणं पुच्छा ?) पृथ्वी आयिोना संबंधी प्रश्न ? (गोयमा ! पुढविकाइया सागरस्सी, जो अणागारपस्सी) हे गौतम! पृथ्वी साक्षर पश्यन्तावाणा छे. अना१२ पश्यन्तावाणा नथी (से केणट्टेणं भंते एवं चुच्चइ) हे भगवन् ! शाखेमधु छे ! ( गोयमा ! पुढविकाइयाणं एगा सुय अण्णाण सागारपासणया पण्णत्ता) हे गौतम! पृथ्वी अयिनी पेठ श्रुताज्ञान साक्षर पश्यन्ता उड़ी छे से तेणçणं गोयमा ! एवं बुच्चइ) थे हेतुथी हे गौतम! खेभ उछु छे ( एवं जाब वणस्सइकाइयाणं) से ४ अरे यावत् वनस्पति अयि सुधी (बे इंदियाणं पुच्छा ! ) द्वीन्द्रियों संबंधी प्रश्न ? (गोयमा ! सागारपस्सी, णो आणागारपस्सी) हे गौतम! साक्षर पश्यन्तावाजा हो अनकार पश्यन्तावाजा नथी (सेकेणणं भंते! एवं बुच्चइ) शा हेतुथी हे भगवन् ! प्रेम 5 छे ? (गोयमा !
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫