Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
प्रज्ञापनासूत्रे
पृथिवीकायिकानां भदन्त ! कतिविधा पश्यन्ता, प्रज्ञप्त ? गौतम ! एका साकार पश्यन्ता, पृथि कायिकानां भदन्त ! साकार पश्यन्ता कतिविधा प्रज्ञप्ता ? गौतम ! एका श्रु ज्ञान साकारपश्यन्ता प्रज्ञप्ता, एवं यावद् वनस्पतिकायिकानाम्, द्वीन्द्रियाणां भदन्त ! कतिविधा पश्यन्ता प्रज्ञता ? गौतम ! एका साकारवश्यन्ता प्रज्ञता, द्रोन्द्रियाणां भदन्त ! साकार पश्यन्ता कतिविधा प्रज्ञप्ता ? गौतम ! द्विविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा श्रुतज्ञानसाकार पश्यन्ता श्रुताज्ञानसाकारपयन्ता एवं त्रीन्द्रियाणामपि चतुरिन्द्रयाणां पृच्छा, गौतम ! द्विविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा - साकारपश्यन्ता,
७२४
(पुढचिकाइयाणं भंते ! कविहा पासणया पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! पृथिवीकायिकों की पश्यन्ता कितने प्रकार की कही हैं ? (एगा सागारपामणया पण्णत्ता) हे गौतम ! एक साकार पश्यन्ता कही है ( पुढविकाइयाणं भंते ! सागारपास
या कइ चिहा पण्णत्ता) पृथिवीकायिकों की हे भगवन् ! साकार पश्यन्ता कितने प्राकर की कही है ? (गोयमा ! एगा सुयअण्णाण सागारपासणया पण्णत्ता) हे गौतम! एक श्रुताज्ञान साकार पश्यन्ता कही है ( एवं जाव वणष्फइ काइयाणं) इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिकों की ।
(बेदियाणं भंते! कइविहा पासणया पण्णत्ता) हे भगवन् ! हीन्द्रियों की पश्यन्ता कितने प्रकार की कही है ? (गोधमा ! एगा सागारपासणया पण्णत्ता) हे गौतम! एक साकार पश्यन्ता कही है (बेइंदियाणं भंते! सागारपासण्या विहा पण्णत्ता ? ) हे भगवन् ! द्वीन्द्रियों की साकार पश्यन्ता कितने प्रकार की कही है ? (गोमा ! दुविहा पण्णत्ता) हे गौतम! दो प्रकार की कही है ? (तं जहा सुयणाण लागारपासणया, सुय अण्णाण सागारपासणया) वह इस ( एवं जाव थणियकुमारा) से ४ अरे यावत् स्तनितभार पर्याप्त समनपु.
( पुढविकाइयाणं भंते! कइविहा पाणया पण्णत्ता) हे भगवन् ! पृथ्वी आविडोनी पश्यन्ता डेंटला प्रारनी उही छे ? (एगा सागारपासणया पण्णत्ता) हे औभ ! खे साकार पश्यन्ता डी छे (पुढविकाइयाणं भंते ! सागरिपासणया कइ बिहा पण्णत्ता ?) पृथ्वी अयिनी हे भगवन् ! सागर पश्यन्ता डेटा प्रभारनी उडी छे ? ( गोयमा ! एगा सुअण्णाणसागारपासणया पण्णत्ता) हे गौतम! श्रेष्ठ श्रुताज्ञान साकार पश्यन्ता अडी छे ( एवं जाव वणफइकाइयाणं) प्रहारे यावत् वनस्पति अयिनी
(बेदियाणं भंते ! कह विहा पासणया पण्णत्ता) हे भगवन् ! द्वीन्द्रियोनी पश्यन्ता डेंटला अअरनी उड़ी छे ? (गोमा ! एगा सागरपासणया पण्णत्ता) हे गौतम! ये सार પશ્યન્તા કહી છે.
(बेदियाण भंते! सागारपासणया कइ विहा पण्णत्ता) हे भगवन् ! द्वीन्द्रियोनी साार पश्यन्ता डेंटला अहारनी उही छे ? ( गोयमा ! दुबिहा पण्णत्ता) से गौतम! मे प्रभारनी अडी छे (तं जहा सुयणाण सागारपासण्या, सुयअण्णाण सागारपासणया) ते आ
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫