Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
प्रमेयबोधिनी टीका पद २६ ० १ कर्मवेदबन्धनिरूपणम्
५११
बन्धक एकविधवन्ध काश्च २६, अथवा सप्तविधवन्धकाश्च अष्टविधवन्यकश्च षडूविधबन्धकाश्च एकविधबन्धकथ २७, इत्येवंरीत्या चतुष्कयोगे अष्टौ भङ्गाः, प्रकृतमुपसंहरति- 'एवं एए सत्तावीस भंगा' एवम् उक्तरीत्या एते पूर्वोक्ता सप्तविंशतिः भङ्गाः सम्पन्नाः, 'एवं जहा णाणावर णिज्जं तहा दंसणावरणिज्जं पि अंतराइयं पि' एवम् पूर्वोक्तरीत्या यथा ज्ञानावरणीयं कर्मवेदयमानानां बन्धकभङ्गाः प्रतिपादिता स्तथा दर्शनावरणीयमपि अन्तरायमपि कर्मवेदयमानानां बन्धकमङ्गाः वक्तव्याः, अथ वेदनीयं कर्मवेदयमानानधिकृत्याह - 'जीवे णं भंते ! वेयणिज्जं कम्मं वेदेमाणे कइ कम्मपगडीओ बंधइ ?' हे भदन्त ! जीवः खलु वेदआठ के बन्धक, एक छह के बन्धक और बहुत एक का बन्धक । (२५) अथवा बहुत सात के बन्धक, एक आठ का बन्धक, बहुत छह के बन्धक और बहुत एक के बन्धक । (२६) अथवा बहुत सात के बन्धक, एक आठ का बन्धक, एक छह का बन्धक और बहुत एक के बन्धक । (२७) अथवा बहुत सात के बन्धक, एक आठ का बन्धक, बहुत छह के बन्धक और एक एक का बन्धक होता है ।
इस प्रकार चार के संयोग से आठ भंग होते हैं । अब प्रकृत विषय का उपसंहार कहते हैं- उक्त प्रकार से ये सत्ताई भंग निष्पन्न होते हैं ।
जिस प्रकार ज्ञानावरणीयकर्म का वेदन करते हुए को बन्ध का प्रतिपादन किया है, उसी प्रकार दर्शनावरणीय और अन्तरायकर्म का वेदन करते हुए जीवों का भी कथन समझ लेना चाहिए ।
अब यह प्ररूपण करते हैं कि वेदनीयकर्म का वेदन करते हुए जीव कितनी प्रकृतियों का बन्ध करते हैं ?
गौतमस्वामी प्रश्न करते हैं-हे भगवन् ! वेदनीयकर्म का वेदन करता हुआ ઘણા એકના બંધક.
(२५) अथवा घणा सातना अंधऊ, खेड आईना अन्ध. ઘણા એકના અંધક
ઘણા છના અંધક અને
(૨૬) અથવા ઘણા સાતના અંધક, એક આઠના બંધક, એક છના અન્યક અને ઘણા એકના અન્યક બને છે.
(૨૭) અથવા ઘણા સાતના મધક એક આઠના ખંધક ઘણા છના બંધક અને એક એકના અંધક હેાય છે.
એ પ્રકારે ચારના સંચાગથી આઠ ભંગ થાય છે.
હવે પ્રકૃતવિષયના ઉપસ’હાર કરે છે–ઉક્ત પ્રકારે આ સત્યાવીસ ભગનિષ્પન્ન થાય છે. જે પ્રકારે જ્ઞાનાવરણીયકર્મોનું વેદન કરી રહેલાના બન્ધનુ પ્રતિપાદન કર્યુ છે, એજ પ્રકારે દાનાવરણીય અને અન્તરાય ક્રમ નુ વેદન કરી રહેલા જીવનુ પણ કથન સમજી લેવુ જોઇએ. હવે એ પ્રરૂપણા કરે છે ફૅ વેદન યક'નું વેદન કરી રહેલા જીવ કેટલી પ્રકૃતિયાના ખન્ય કરે છે?
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫