Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासत्रे नैरयिकास्तथैव, पृथियोकायिकाः खलु भदन्त ! यान् पुद्गलान् आहारतया गृह्णन्ति ते खलु तेषां पुद्गलाः कीदृक्तया भूयोभूयः परिणमन्ते, एवं यावद् वनस्पतिकायिकाः ।। सू० ३ ॥
टीका-अथ पृथिवीकायिकादीनामेकेन्द्रियाणां पूर्वोक्तान सप्ताधिकारान् प्ररूपयितुमाह'पुढविकाइया णं भंते ! माहारट्ठी?' हे भदन्त ! पृथिवीकायिकाः खलु किम् आहारार्थिनो भवन्ति ? भगवानाह-'गोयमा!" हे गौतम ! 'हंता, आहारट्ठी' हे गौतम ! हन्त-सत्यम्, पृथिवीकायिका आहारार्थिनो भवन्ति, गौतमः पृच्छति-'पुढ विकाइया णं भंते ! केवइकारेति) क्या उन सब का आहार करते हैं ? (नो सव्वे आहारे ति) सर्व के एक देश का आहार करते हैं ? (जहेव नेरइया तहेय) जैसे नारक वैसे ही पृथ्वीकायिक
(पुढविकाइया णं भंते !जे पोग्गले आहारत्तार गिरोहंति) हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जिन पुदगलों को आहार रूप में ग्रहण करते हैं (ते णं तेसिं पुग्गला कीसत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमंति ?) वे पुद्गल उनके लिए किस रूप में पुनः पुनः परिणत होते हैं ? (गोयमा ! फासिदियवेमायत्ताए भुजो भुज्जो परिणमंति) हे गौतम ! स्पशेन्द्रिय की विषम मात्रा के रूप में पुनः पुनः परिणत होते हैं (एवं जाय यणप्फइ काइया) इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक |सू०३॥
टीकार्थ-अब पृथिवीकायिक आदि एकेन्द्रियों के विषय में सात अधिकारों का प्ररूपण किया जाता है
गौतमस्वामी-हे भगवन् ! क्या पृथिवी कायिक आहारार्थी होते हैं ? भगवान्-हे गौतम ! हां, पृथ्वीकायिक आहारार्थों होते हैं।
गौतमस्थामी-हे भगवन् ! पृथ्वीकायिकों को कितने काल में आहार की अभिलाषा होती है ? पुशीन २२ ३५मां ! ४२ छे (ते किं सव्ये आहारे ति) शुते सयानो माहार ४३ छे ? (नो सव्ये आहारे ति) सना मे देशना मा।२ ४२ हे. (जहेव नेरइया तहेय) જેવા નારક તેવા પૃથ્વીકાયિક
(पुढविकाइयाणं भंते ! जे पोग्गले आहारत्ताए गिण्हंति)- सन् ! पृथ्वीजयि में पान मा४।२३५मा ४५ ४२ छे. (ते ण तेसिं पुग्गला कीसत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमंति ?) ते पास तेमने भाटे य॥ ३५मा पुन: पुन: परिणत थाय छ ? (गोयमा ! फासिंदिययेमायत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमंति)-हे गौतम ! २५शेन्द्रियनी विषम मात्रामा पुन: पुन: ५/२९ त थाय छे. (एवं जाव वणप्फइकाइया) मे ॥२ ११२५ति4. सू० ३॥ ટીકાથ-હવે પૃથ્વીકાયિક આદિ એકેન્દ્રિના વિષયમાં સાત અધિકારની પ્રરૂપણા કરાય છે! શ્રીગૌતસ્વામી-હે ભગવન્! શું પૃથ્વી કાર્ષિક અહારાર્થ હોય છે? શ્રીભગવાન-હે ગૌતમ! હા, પૃથ્વીકાધિક આહારાથી હોય છે એમ કહ્યું છે. શ્રીૌતમસ્વામી–હે ભગવન : પૃથ્વીકાયિકેને કેટલા કાળમાં આહારની અભિલાષા થાય છે?
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫