Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमैयबोधिनी टीका पद २९ सू० १ साकारानाकारोपयोगनिरूपणम्
७०१ रोपयुक्ता अपि अनाकारोपयुक्ता अपि, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-जीयाः साकारोपयुक्ता अपि अनाकारोपयुक्ता अपि ? गौतम ! ये खलु जीवाः आभिनिबोधिकज्ञान श्रुतज्ञानावधिज्ञानमनःपर्यज्ञानकेवलज्ञानमत्यज्ञानश्रुताज्ञानविभङ्गज्ञानोपयुक्त स्ते खलु जीवाः साकारोपयुक्ताः ये खलु जीवाश्चक्षुर्दर्शनाचक्षुदर्शनावधिदर्शन केवलदर्शनोपयुक्तास्ते खल जीवा अनाकारोपयुक्ता स्तत् तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते-जीवाः साकारोपयुक्ता अपि
(जीया णं भंते ! कि सागारोव उत्ता अणागारोच उत्ता ?) हे भगवन् ! जीव साकारोपयोगवाले हैं या अनाकारोपयोगघाले हैं ? (गोयमा ! सागारोव उत्ता वि अणागारोव उत्ता वि) हे गौतम ! साकारोपयोग वाले भी, अनाकारोपयोगवाले भी (से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ-जीवा सागारोब उत्ता वि, अणागारोवउत्ता वि) हे भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि जीव साकारोपयोग वाले भी, अनाकारोपयोगवाले भी हैं ? (गोयमा ! जे णं जीया) हे गौतम ! जो जीव (आभिणियोहियनाण-सुयनोण-ओहिनागमणपज्जयनाणकेवलनाण मइ अण्णाण-सुयअण्णाण-विभंगणाणोवउत्ता) मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान मन:पर्यवज्ञान, केवल ज्ञान, मत्यज्ञान, श्रुताज्ञान, और विभंगज्ञान में उपयोग वाले हैं (ते णं जीवा सागारोवउत्ता) वे जीव साकारोपयुक्त हैं (जे णं जीवा चक्खुदंसण--ओहिदंसण-केवलदसणोवउत्ता) जो जीय चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अयधिदर्शन और केवल दर्शन में उपयोगवाले हैं (ते णं जीवा अणोगारोवउत्ता) ये जीव अनाकारोपयुक्त हैं (से तेणटेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ जीया सागारोव. उत्ता चि अणगारोव उत्तावि) हे गौतम ! इस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि जीच साकारोपयोग पाले भी हैं, अनाकारोपयोग वाले भी हैं।
(जीवाणं भंते ! किं सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता ?) भगवन् ! ७५ सारोपयोग पामा छ है मना५योगमा छ ? (गोयमा ! सागारोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि) है गौतम ! स१७।३।५योग ५९], अना।।५योगपाण। ५५५ (से केणट्रेणं भंते एवं बुच्चइ जीवा सागारोवउत्ता वि अणागारोव उत्ता वि) हे भगवन् ! ।। तुथी सेम उपाय छ । ७१ सारोपयोग या ५९, मना५योगवा॥ ५९ छ ? (गोयमा ! जेणं जीवा). गौतम ! रे ७५ (आभिणिबोयानाण, सुयनाण, ओहिनाण मणपज्जवनाण केयलनाण मइअ. ण्णाण सुयअण्णाण विभंगणाणोवउत्ता) भतिज्ञान श्रुतज्ञान, अपविज्ञान, मन:५५ज्ञान, उपसज्ञान, भत्य ज्ञान, श्रुतासान मने विमानमा ५योग१॥ छ (ते णं जीवा सागारोवउत्ता) ते ७॥ सारोपयुरत छ (जेणं जीवा चक्खुदसणअचम्खुदंसण ओहिदसण केवलदसणोवउत्ता) ले ७५ यक्षुशन, सयक्षुशन अवधि भने सशनमा
योगा। छ (तेणं जीवा अणागारोब उत्ता) ते ०। मनोपयुक्त छे (से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ जीवा सागारोव उत्ता वि अणागारोव उत्ता वि) हे गौतम ! मे तुथी
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫