Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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____ प्रज्ञापनासूत्र गौतम ! एकः अचक्षुर्दर्शनानाकारोपयोगः, एवं त्रीन्द्रियाणामपि, चतुरिन्द्रियाणामपि एवश्चैव, नवरम् अनाकारोपयोगो द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-चक्षुदेशनानाकारोपयोगः, अचक्षुदेश नानाकारोपयोगः, पञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकानां यथा नैरयिकाणाम् , मनुष्याणां यथा औधिक उपयोगो भणितस्तथा भणितव्यः वानव्यन्त रज्योतिष्कवैमानिकानां भदन्त ! यथा नेर यिकाणाम् , जीवाः खलु भदन्त ! किं साकारोपयुक्ताः अनाकारोपयुक्ताः ? गौतम ! साकाइस प्रकार-आभिनियोधिकज्ञान साकारोपयोग, श्रुतज्ञानसाकारोपयोग, मत्यज्ञान साकारोपयोग, श्रुताज्ञान साकारोपयोग (बेइंदियाणं अणागारोवओगे काविहे पण्णत्ते) द्वीन्द्रियों का अनाकारोपयोग कितने प्रकार का कहा है ? (गोयमा ! एगे अचक्खुदंसण अणागारोवओगे) हे गौतम ! एक अचक्षुदर्शन अनाकारोपयोग।
(एवं तेइंदियाण वि) इसी प्रकार त्रीन्द्रियों का भी (चउरिंदियाण वि एवं चेव) चतुरिन्द्रियों का भी इसी प्रकार (नवरं अणागारोवओगे दुविहे पण्णत्ते) विशेष-अनाकारोपयोग दो प्रकार का कहा है (तं जहा-चक्द सण प्रणागारोव
ओगे, अचक्खुदसण-अणागारोवओगे) वह इस प्रकार-चक्षुदर्शन-अनाकारो पयोग और अचक्षुदर्शन- अनाकारोपयोग
(पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं जहा नेरइयाणं) पंचेन्द्रिय तिर्यचों का उपयोग नारकों के समान
(मणुस्साणं जहा ओहिए उपओगे भणितं तहेव भाणियव्यं) मनुष्यों का उपयोग जैसा समुच्चय उपयोग कहा वैसा कहना चाहिए (वाणमंतर जोइसिय वेमाणियाणं भंते ! जहा नेरइयाणं) वानव्यन्तरों, ज्योतिष्कों और वैमानिकों का हे भगवन् ! नारकों के समान सारोपयोग, श्रुतज्ञान सागयोग, मत्यज्ञान सारोपयोग श्रुताज्ञान सारोपयो। (बेइंदियाणं अणागारोवओगे कइविहे पण्णत्ते) दीन्द्रियोना सारोपयो । प्रा२ना ह्या छ ? (गोयमा ! एगे अचक्खुदसण अणागारोवओगे) हे गौतम ! ४ सयक्षुशन मना५योग. (एवं तेइंदियाण वि) मे ५५१३ त्रीन्द्रियाना पाY (चरिदियाण वि एवं चेव) यतुरि. न्द्रियाना ५५ से प्रारे (नवरं अणागारोवओगे दुविहे पण्णत्त) विशेष अना५योग मे ४२॥ ४॥ छ (तं जहा-चक्खुदंसण अणागारोवओगे अचखुदंसण अणागारोबओगे) ते मा प्रारं यक्षुशन सारोपयो भने सयशन अनारोपयोग. (पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं जहा नेरइयाणं) पश्यन्द्रिय तिय याना उपयो! नानी समान atyan.
(मणुस्साणं जहा ओहिए उत्रओगे भणितं तहेव भाणियवं) मनुष्योना उपयोग सभुस्यय उपयोग धा छ, तेवा ४१ नये. (धानमंतर जोइसिय वेमाणियाणं भंते ! जहा नेरइयाणं) पानयन्ती, ज्योति मने मानिन सन् ! नाहीना समान.
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫