Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्रे अनाहारकः ? गौतम ! आहारको नो अनाहारकः, एवम् एकेन्द्रियविकलेन्द्रियवों यावद् वैमानिकः, एवं पृथक्त्वेनापि, द्वारम् ५, संयतः खलु भदन्त ! जीयः किम् आहारकः ? अनाहारकः ? गौतम ! स्याद् आहारकः स्याद् अनाहारकः, एवं मनुष्योऽपि, पृथक्त्वेन त्रिकभङ्गः, असंयतः पृच्छा, स्याद् आहारकः स्यात् अनाहारकः, पृथक्त्वेन जीपैकेन्द्रियवर्जतीन भंग (मिच्छादिट्ठीसु) मिथ्यादृष्टियों में (जीवेगिंदियच जो) जीव और एकेन्द्रिय को छोड कर (तियभंगो) तीन भंग कहे हैं।
(सम्मामिच्छादिट्ठी णं भंते ! कि आहारगा, अणाहारगा?) हे भगवन् ! सम्यगूमिथचादृष्टि जीव क्या आहारक हैं या अनाहारक ? (गोयमा ! आहारगे, नो अणाहारगे) हे गौतम ! आहारक, अनाहारक नहीं (एवं एगिदियविगलिंदिययज्ज) इस प्रकार एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय को छोडकर (जाच वेमाणिए) यावत् वैमानिक पर्यन्त समझ लेवे (एवं पुहुत्तेण वि) इस तरह बहुत्य की अपेक्षा से भी जान लेवें। ___(संजए णं भंते ! जीवे किं आहारगे, अणाहारगे ?) हे भगवन् ! संयत जोय आहारक होता है या अनाहारक ? (गोयमा ! सिय आहारगे, सिय अणा हारगे) हे गौतम ! स्यात् आहारक, स्यात् अनाहारक होता है (एवं मणूसे वि) इसी प्रकार मनुष्य भी (पुहत्तेणं नियभंगो) पृथक्त्व की विवक्षा से तीन भंग होते हैं । (असंजए पुच्छा ?) असंयत संबंधी पृच्छा ? (सिय आहारए सिय अणाहारए) कदाचित् आहारक, कदाचित् अनाहारक (पुहुत्तेणं जीवे गिदियवज्जो तियभंगो) बहुत्व की अपेक्षा से जीव और एकेन्द्रिय को छोड कर तीन भंग कहे हैं।
(मिच्छ दिदीसु) मिथ्याटियामा (जीवेगिंदियवज्जो) ७५ अने मेन्द्रिय सिवाय तियभगो) ३ मा
(सम्मामिच्छादिट्ठीगं भते ! कि आहारगा, अणाहारगा १)-3 भगवन् ! सभ्य मिथ्याष्टि शु माह:२४ छ । मना२४ ? (गोयमा आहारगे नो अणाहारगे)- गौतम ! भाड।२४, माना २४ नही (एवं एगि दियविगलि दियवज्ज) से प्रारे मेन्द्रिय अने विसन्द्रिय सिपाय (जाव येमाणिए) यावत् वैमानि (एवं पुहुत्तेण वि) से प्रारे म.पनी અપેક્ષાથી પણ.
(संजएणं भते जी कि आहारगे, अणाहारगे १)-3 सन् ! सय ७५ २६।२४ हाय छ है मनाई।२४ ? (गोयमा ! सिय आहारगे सिय अणाहारगे)-3 गौतम ! स्यात् माहा२४-श्यात् मना४।२४ डाय छ (एवं मणूसे वि) मे ५४२ मनुष्य ५६ (पुहुत्तेण तिय भंगो) पृथयनी विपक्षाथी १७ मा थाय छे.
(असंजए पुच्छा) २सयत सम्बन्धी प्रश्न ? (सिय आहारए सिय अणाहारए) हायित् भाइ।२४ ४ायित् मनाहा२४ (पुहुत्तेणं जीवेगिंदियवज्जो तिय भगो) महत्पनी अपेक्षाथी
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫