Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्रे
येषामस्ति औदारिकशरीरम्, वैक्रियशरीरिण आहारकशरीरिणश्थ आहारका नो अनाहारकाः, येषामस्ति, तैजसकार्मणशरीरो जीवैकेन्द्रियवर्जस्त्रिकभङ्गः, अशरीरिणो जीवाः सिद्धाश्व नो आहारका अनाहारकाः, द्वारम् १३, आहारकपर्याप्त्या पर्याप्तः शरीरपर्याप्त्या पर्याप्तः इन्द्रिय पर्याप्त्या पर्याप्तः, आनप्राणपर्याप्त्या पर्याप्तः आषामनः पर्याप्त्या पर्याप्तः, एतासु पञ्चसु अपि पर्याप्तिषु जीवेषु मनुष्येषु च त्रिकभङ्गः, अवशेषा आहारका नो अनाहारकाः, भाष मनः
( ससरीरी जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो) सशरीरी, जीव और एकेन्द्रिय को छोडकर तीन भंग (ओरालियतरीरी ) औदारिकशरीरी (जीवमणूसेसु तियभंगो) जीवों और मनुष्यों में तीन भंग (अवसेसा आहारगा, जो अणाहारगा) शेष आहारक होते हैं, अनाहारक नहीं (जेसि अस्थि ओरालियसरीरं) जिनको औदारिकशरीर होता है (वेउच्चियसरीरी आहारगासरीरी य आहारगा णो अणाहारगा) वैक्रियशरीरी और आहारकशरोरी आहारक होते हैं, अनाहारक नहीं (जेसिं अस्थि) जिन्हें होते हैं (तेयकम्मसरीरी जीवेगिंदिपबज्जो तियभंगो) तैजसशरीरी और कार्मणशरीरी जीव और एकेन्द्रिय को छोडकर तीन भंग (असरीरी जीवा सिद्धा य) अशरीरी जीब और सिद्ध होते हैं (नो आहारगा, अणाहारगा) वे आहारक नहीं, अनाहारक हैं (आहारपजतीए पत्ते) आहारपर्याप्ति से पर्याप्त ( सरीरपज्जत्तीए पज्जत्ते) शरीरपर्याप्ति से पर्याप्त (इंदियपज्जत्तीए पज्जते ) इन्द्रियपर्याप्ति से पर्याप्त ( आणापाणपजत्तीए पजत्ते) श्वासोच्छवासपर्याप्ति से पर्याप्त (भासायणपज्जत्तीए पज्जत्तए) भाषा - मनः पर्याप्ति से पर्याप्त (एतासु पंचसु वि पज्जत्ती सु) इन पांचों
( ससरीरी जीवेगिंदियवज्जो तियभांगो) સશરીરી, જીવ અને એકેન્દ્રિય સિવાય ત્રણ ભંગ (ओरालि यसरीरी) हारि४ शरीरी (जोत्रमणूसेसु तियभंगो) लव ने मनुष्योमात्र मंग ( अवसेसा आहारगा, णो अणाहारगा) शेष आहार होय छे, अना २४ नहीं (जेसि अस्थि ओरालि यसरीरी) मने मोहारिए शरीर होय छे (वे उव्वियसरीरी आहारगसरीरी आहारगा जो अनाहारगा) वैडिय शरीरी भने भाडारड शरीरी आहार होय छे, मनाही २४ नहीं (जेसि अस्थि) भेभने होय छे; (तेयकम्मसरीरी जीवेगि दियवज्जो तियभंगो) तैनसशरीरी ने अभी शरीरी, लव भने खेन्द्रिय सिवाय अंग (असरीरी जीवा सिद्धा य) अशरीरी 4 भने सिद्ध होय छे (नो आहारगा, अणाहारगा) तेथे નહી અનાહારક હાય છે.
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(आहारपज्जतीर पत्ते) आहार पर्यासिथी पर्यास ( सरीरखज्जत्तीए पज्जत्ते) शरीर पर्याप्तिथी पर्याप्त (इंदियपज्जतीए पज्जत्ते) इन्द्रिय पर्याप्तिथी पर्याप्त ( आणापाणपज्जत्तीए पज्जत्ते) श्वास वास पर्यातिथी पर्याप्त ( भासामणपज्जत्तीए पज्जत्तर) भाषामन पर्यातिथी पर्याछे (एतासु पञ्च विपत्ती) आप पर्याप्तियामां (जीवेसु मणूसेसु य) लवे
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫