Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
૪૮૨
प्रज्ञापनासूत्र य ५' अथवा बहव एव मनुष्याः सप्तविधवन्धकाश्च एकविधबन्धकाश्च पविधबन्धकाश्च ५, 'अहा सत्त विवंधगा य एगविहबंधगा य अविहबंधगे य छबिहबंधगे य ६' अथवा बहवः सप्तविधवन्धकाश्च एकविधबन्धकाश्च भवन्ति कश्चित्पुनः अष्टविधबन्धकश्च पइविधबन्धकश्च भवति ६, 'अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्टविहबंधगे य छविहबंधगा य७' अथवा सप्तविधबन्धकाश्च एकविधबन्धकाश्च बहवो भवन्ति, कश्चिद् अष्टविधबन्धकश्च भवति, बहवः षडूविधयन्धकाश्च भवन्ति७, 'अहया सतविहबंधगा य एगविहबंधगा य अहविहबंधगा य छविहबंधगे य८' अथवा बहवः सप्त विधबन्ध काश्च एकविधवन्धकाश्च अष्टविधवन्धकाश्च भवन्ति कश्चित् षड् विषबन्धकश्च भवति ८, 'अहवा सत्त विहबंधगा य एगविहवंधगा य अविहबंधगा य छबिहबंधगा य ९' अथवा बहब एव मनुष्या वेदनीयं कर्म बनन्तः सप्तविधबन्धकाश्च एक विधबन्धकाश्च अष्टविधवन्धकाश्च पविधबन्धकाश्च भवन्ति ९, ‘एवं ए नव भंगा भाणियच्या' एवम्-उक्तरीत्या एते-पूर्वप्रदर्शिता मनुष्यपदसम्बन्धिनो नयभङ्गा भणितव्याः, गौतमः पृच्छति-'मोहणिज्जं बंधमाणे जीवे करकम्मपगडोओ बंधइ ?' हे भदन्त ! मोहनीयं कर्म बन्धक होता है । (५) अथवा बहुत-से सात के बन्धक, बहुत से एक के बन्धक
और बहुत-से छह के बन्धक होते हैं । (६) बहुत-से सात के बन्धक, बहुतसे एक के बन्धक और कोई एक आठ का बन्धक और एक छह का बन्धक होता है ? (७) अथवा बहुत सात के बन्धक एवं बहुत एक के बन्धक होते हैं। एक कोई आठ का बन्ध होता है, और बहत छह के बन्धक होते हैं । (८) बहुत सात के बन्धक, बहुत एक के बन्धक, बहुत आठ के बंधक और एक कोई छह का बन्धक होता है । (९) अथवा बहुत मनुष्य सात के बन्धक बहुत एक के बन्धक, बहुत आठ के बन्धक और बहुत-से छह के बन्धक होते हैं।
इस प्रकार ये नौ भंग कहलेना चाहिए। गौतमस्थामो-हे भगवन् मोहनीयकर्म को बांधता हुआ जीव कितनो कर्म (૫) અથવા ઘણા સાતના બંધક, ઘણા એકના બન્ધક અને ઘણા છના બંધક થાય છે.
(૬) ઘણું સાતના બન્ધક, ઘણુ એકના બધક અને કેઈ એક આઠને બધેક અને કેઈ એક છનો બન્ધક થાય છે.
(૭) અથવા ઘણા સાતના બન્ધક તેમજ ઘણું એકના બધેક થાય છે. કેઈ એક અઠને બન્ધક થાય છે. અને ઘણા છના બન્ધક બને છે.
(૮) ઘણું સાતના બધક, ઘણા એકન બધેક, ઘણુ આઠના બન્ધક અને એક કે છો બન્ધક બને છે.
(૯) અથવા ઘણા મનુષ્ય સાતના બધક, ઘણું એકના બધેક, ઘણા આઠના બમ્પક અને ઘણા છના બન્ધક થાય છે,
આ પ્રકારે આ નવ ભંગ કહી લેવા જોઈએ.
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫