Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
प्रमेयबोधिनी टीका पद २६ सू० १ कर्मवेदबन्धनिरूपणम्
विबन्धकाः १, अथवा सप्तविधबन्धकाश्च अष्टविधबन्धकश्च २, अथवा सप्तविधबन्धकाच अष्टविधधका ३, अथवा सप्तविधबन्धकाथ षड्विधबन्धकथ ४, एवं षड्विधबन्धकेनापि समं द्वौ भङ्गौ, एकविधवन्यकेनापि समं द्वौ भङ्गौ सप्तविधवन्धकाथ अष्टविधबन्धकथ षड्विधबन्धकश्च चतुर्भङ्गः १ अथवा सप्तविधबन्धकाथ अष्टविधबन्धक एकविधबन्धकाथ चतुर्भङ्गः २, अथवा सप्तविधबन्धकाञ्च षड्विधबन्धवश्व एकविधबन्धकश्च चतुर्भङ्गः ३, होजा सत्तविहबंधगा ) हे गौतम! सभी मनुष्य सात के बन्धक होते हैं ( अहवा मत्तविहबंधगा य अडविहबंधगे य) अथवा बहुत सात के बन्धक और एक कोई आठ का बन्धक ( अहवा सत्तविहबंधगाय अट्ठविहबंधगा य) अथवा बहुत सात के बन्धक और बहुत आठ के बन्धक ( अहवा सत्तविहबंधगा य छन्हिबंधगे य) अथवा बहुत सात के बन्धक और एक छह का बन्धक ( एवं छवि समं दो भंगा) इसी प्रकार छह के बन्धक के साथ भी दो भंग (गविहबंधण बि समं दो भंगा) एक के बन्धक के साथ भी दो भंग ( अहवा सत्तविहबंधगा य, अडविहबंधए य, छव्चिहबंधए य चउभंगो) अथव बहुत सात के बन्धक, एक आठ का बन्धक, एक छह का बन्धक, चौ भंग ( अहवा सत्तविहधगा य, अट्ठविहबंधए य, एगविहबंधगे य, चउभंगो) अथवा बहुत सात के बन्धक, एक आठ का बन्धक, और एक एक प्रकृति का बन्धक - चार भंग ( अहवा सत्तविहबंधगा य, छन्हिबंध य एहिबंधए (गोयमा ! सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविह होय छे.
અથવા ઘણા સાતના અંધક અને
४९७
(मणूसाणं पुच्छा) मनुष्योना विषयभां प्रश्न ? बंधा ) हे गौतम! अधा भनुष्य सातना अंध (अवा सत्तविहब धगा य, अट्ठविहबंधगे य) કાઈ એક આઠના બંધક.
( अहवा सत्तविहबंधगा य, अदुविहबंधगा य) अथवा धागा સાતના અંધક અને ઘણા આર્ડના અંધક.
( अहया सत्तविहब धगा य छव्हिबधगे य) अथवा घाणा सतना અધક અને એક છના અંધક.
( एवं छव्विहण वि सम दो भंगा) એજ પ્રકારે છના સમ્બન્ધની સાથે પણ लौंग ( एगविहब धरण वि सम दो भंगा) सेना अन्धधुनी साथै पशु मे लग थाय छे.
( अहवा सत्तविहब'धगा य अट्ठविहबंध रय छव्विबधए य चउभंगो) अथवा धा સાતના અન્ધક, એક આઠના અન્ધક, એક છનેા ખંધક ચતુ་ગ.
( अहवा सत्तविहबंधगा य, अट्टविहबंधए य, एगविहबंधगे य, चउमंगो) अथवा धागा સાતના અન્ધક, એક આહના બંધક, અને એક એકપ્રકૃતિના અંધક ચાર ભાંગ, छव्विहबंधए य एगविहबंधर य चउभंगो) अथवा
( अहवा सत्तविहब धगा य,
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫