Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्रे वा अष्टविधबन्धको वा षविधबन्धको वा एकविधबन्धको या, नैरयिकः खलु भदन्त ! ज्ञानावर णीयं कर्म वेदयमानः कति कर्मप्रकृती बंधनाति ? गौतम ! सप्त विधवन्धको वा अष्टविधबन्धको चा, एवं यावद् वैमानिकः, एवं मनुष्यो यथा जीवः, जीयाः खलु भदन्त ! ज्ञानावरणीयं कर्म
व छच्चीसवां कर्मवेद-बन्धपद शब्दार्थ-(कइ णं भंते ! कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ?) हे भगवन् ! कर्मप्रकृ तियां कितनी कही हैं ? (गोयमा ! अट्ट कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ) हे गौतम ! कर्मप्रकृतियाँ आठ कही हैं (तं जहा णाणायर णिज्जं जाय अंतराइयं) वे इस प्रकार ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय (एवं नेरइयाणं जाय वेमाणियाणं) इसी प्रकार नैरयिकों की यावत् वैमानिकों की। ___ (जीवे णं भंते ! णाणावरणिज्जं वेदेमाणे कई कम्मपगडीओ बंधइ ?) हे भग चन् ! जीव ज्ञानावरणीयकर्म का बेदन करता हुआ कितनी प्रकृतियों का बंध करता है ? (गोयमा ! सत्तविहबंधए वा, अट्ठविहबंधए वा, छव्यिहबंधए था, एगविहबंधए या) हे गौतम ! सात प्रकृतियों का बन्ध करता है, आठ का बन्ध करता है, छह का बंध करता है या एक का बन्ध करता है।
(नेरइए णं भंते ! णाणावरणिज्ज कम्मं वेदेमाणे कति कम्मपगडीओ बंधई ?) हे भगवन् ! नारक ज्ञानावरणीयकर्म का येदन करता हुआ कितनी कर्मप्रकृ. तियों का बन्ध करता हैं ? (गोयमा ! सत्तविहबंधए था, अट्ठविहबंधए या) हे गौतम ! या सात का बन्ध करता है अथवा आठ का बंध करता है (एचं जाय वेमाणिए) इसी प्रकार चैमानिक तक (एवं मणूसे जहा जीवे) इसी प्रकार
છવ્વીસમું કર્મ વેદ–બન્ધ પદ शहाय :-(कइ ण भंते ! कम्म पगडीओ पण्णत्ताओ?)-3 मगन् ! म प्रतियो सी ही छे ? (गोयमा ! अटु कम्मपगडोओ पग्णत्ताओ) हे गौतम ! प्रतियो 2418 381 छे (तं जहा-णाणावरणिज्ज जाय अंतराइयं) ते ५४॥२-ज्ञानाप२०ीय यावत् भतराय (एव नेरइयागं जाव वेमाणियाण) मे४ ५४२ ३२4। यावत् वैमानिनी.
(जीवे णं भंते ! णाणावरणिज्ज वेदेमाणे कइ कम्मपगडोओ बंधइ ?) हे सावन् ! शाना१२९५४मनु वेहन ४२री २डेसी ७५ टक्षी ४ प्रतियोन। ५५ ४२ छ ? (गोयमा ! सत्तविहबंधए वा, अटुविहबंधए वा, छव्विहबंधए वा, एगविहबंधए वा) हे गौतम ! सात પ્રકૃતિનો બન્ધ કરે છે, આઠનો બંધ કરે છે, છત બંધ કરે છે અગર એકને બંધ કરે છે.
(नेरइए णं भंते ! णाणावरणिज्ज कम्म वेदेमाणे कति कम्मपगडीओ बंधइ ?) है ભગવન! નારક જ્ઞાનાવરણીયકર્મનું વદન કરતા કેટલી કર્મપ્રકૃતિનું બન્ધન કરે છે.
(गोयमा ! सत्तविहबंधर वा अविबंधर वा) 3 गौतम ! सातन। ५५ ४३ छे 1241 246नी ५५ ७३ छ (एवं जाय पेमाणिए) मे आरे वैभानि सुधी (एवं मणूसे
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫