Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमैयबोधिनी टीका पद २३ सू० १३ आयुष्यकर्मणो जघन्यस्थितिबन्धनिरूपणम् ४३५ णं जीवे असंखेप्पद्धापविटे सव्वनिरुद्ध से आउए, सेसे सव्वमहंतीए आउयबंधद्धाए तीसे णं आउयबंधद्धाए चरिमकालसमयंसि सव्वजहपिणयं ठिई पजत्तापजत्तियं निव्वत्तेइ, एस गं गोयमा ! आउयकम्मस्स जहण्णठिई बंधए, तव्वइरित्ते अजहणणे" ॥ सू० १३॥ __छाया-ज्ञानावरणीयस्य खलु भदन्त ! कर्मणो जघन्यस्थितिबन्धकः कः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! अन्यतरः सूक्ष्मसम्परायः, उवशमको वा क्षपको वा, एप खलु गौतम ! ज्ञानावरणी. यस्य कर्मणो जघन्यस्थितिबन्धकः, तद् व्यतिरिक्तोऽजघन्यः, एवम् एतेन अभिलापेन मोहायुष्यवर्जानां शेषकर्मणां भणितव्यम् ? मोहनीयस्य खलु भदन्त ! कर्मणो जघन्यस्थितिबन्धकः कः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! अन्यतरो बादरसम्परायः-उपशमको वा क्षपको वा, एष खलु
जघन्य कर्मस्थिति बन्धक शब्दार्थ-(णाणावरणिज्जस्स णं भंते ! कम्मस्स जहण्णटिइबंधए के पण्णत्ते) हे भगवन् ! ज्ञानाचरणीय कर्म की जघन्य स्थिति का बन्धक-बांधनेवाला-कोन कहा गया है ? (गोयमा ! अण्णयरे सुहमसंपरायए उसामए वा खवगे चा) हे गौतम ! अन्यतर सूक्ष्मसम्पराय उपशमश्रेणीवाला अथवा क्षपकश्रेणीवाला (एसणं गोयमा) हे गौतम ! यह (णाणावरणिज्जस्त) ज्ञानावरणीय कर्म का (जहपणठिइबंधए) जघन्य स्थिति का बन्धक होता है (तव्वइरित्ते अजहण्णे) उससे भिन्न अजघन्य स्थिति का बंधक होता है (एच) इस प्रकार (एएणं अभिलावेणं) इस अभिलाप से (मोहाउयवजाणं) मोहनीय और आयु को छोड कर (सेस कम्माणं) शेष कर्मों के विषय में (भाणियचं) कहना चाहिए। (मोहणिजस्स णं भंते ! कम्मरस जहाणठिइबंधए के पण्णत्ते ) हे भगवन् ! मोहनीय कर्म की
જઘન્ય કમસ્થિતિ બન્ધક साथ-(णाणावरणिज्जस्स णं भंते ! कम्मरस जहण्णदिइबंधए के पण्णत्ते)- मापन शानावरणीय भनी “धन्य स्थितिमा मन्५ मांधावा १ ४ा छ ? (गोयमा ! अण्णयरे सहुमसंपरायए उवसामए या खवगे वा)-3 गौतम ! मन्यत२ सूक्ष्म ५२१५ उपशमश्रेणी वा अथवा १५४श्रेणी पाणा (एसणं गोयमा) 3 गौतम ! मा (णाणावरणिज्जस्स कम्मस्स) ज्ञाना५२७१य ४मना (जहण्णठिई बंधए) धन्य शितिना - थाय छ (तन्वइरित्ते अजहण्णे) तनाथी मिन्न मन्य स्थितिमा ४ थाय छ (एवं) मेरे (एएणं अभिलावेणं) मा मनिसाथी (मोहाउयवज्जाणं) भाडनीय मने मायुन। सिवाय (सेसकम्माणं) शेष नि। विषयमा (भाणियव्वं) ४१ नये
(मोहणिज्जस णं भंते ! कम्मस्स जहण्णठिइबंधए के पण्णत्ते १)-3 सगवन् ! भाई नीय भनी धन्य स्थितिना मध या सा छे ? (गोयमा अन्नयरे बादुरसंपराए)
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫