Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्रे शुक्लले श्यो वा ज्ञानी वा अज्ञानी वा उत्कृष्टतंक्लिष्टपरिणामो वा असंक्लिष्टपरिणामो वा तत्प्रायोग्यविशुद्धयमानपरिणामो वा, ईदृशः खलु गौतम ! मनुष्यः उत्कृष्ट कालस्थितिकम् आयुष्यं कर्म बध्नाति, कीदृशी खलु भदन्त ! मानुषी उत्कृष्टकालस्थितिकम् आयुष्यं कर्म बध्नाति ? गौतम ! कर्मभूमिगा वा कर्मभूमगप्रतिभागिनी वा यावत् श्रुतोपयुक्ता सम्यग्दृष्टिः शुक्ललेश्या तत्प्रायोग्रयविशुद्धयमानपरिणामा, ईदृशी खलु गौतम ! मानुषी उत्कृष्ट कालभूमिज, यो कर्मभूमिज के समान, यावत् श्रुत में उपयोगवाला (सम्मदिट्टी वा मिच्छद्दिट्ठी वा) सम्यग्दृष्टि अथवा मिथ्यादृष्टि (कण्हलेसे वा सुक्कलेसे वा) कृष्णलेश्यावाला अथवा शुक्ललेश्यावाला (णाणी वा अण्णाणी वा) ज्ञानी अथवा अज्ञानी (उकोससंकिलिट्टपरिणामे वा असंकिलिट्ठपरिणामे वा) संक्लेश-परिणाम वाला अथवा असंक्लेश-परिणाम याला (तप्पाउग्गविसुज्जमाणपरिणामे वा) तत्प्रायोग्य तीव्र विशुद्ध होते हुए परिणाम वाला (एरिसए णं गोयमा ! मणसे उक्कोसकालट्टिईयं आउयं कम्मं बंधइ) हे गौतम ! इस प्रकार का मनुष्य उत्कृष्ट स्थिति वाले आय कर्म का बन्ध करता है।
(केरिसया णं भंते ! मणुसी उक्कोसकालहिइयं आउयं कम्मं बंधइ ?) हे भग. चन् ! किस प्रकार की मानुषी उत्कृष्ट स्थिति वाले आयु कर्म को बांधती है ? (गोयमा ! कम्मभूमिया वा कम्मभूमगपलिभागी वा जाव सुत्तोवउत्ता) हे गौतम ! कर्मभूमिजा अथवा कर्मभूमिजा सरीखी, यावत् श्रुत में उपयोग वाली (सम्मट्टिी सुक्कलेस्सा) सम्यग्दृष्टिी शुक्ललेश्यावाली (तप्पाउग्गविसु जमाणपरिणामा) पत्प्रायोग्य विशुद्ध होते हुए परिणाम वाली (एरिया गं भागी वा जाव सुत्तोवउत्ते)-ई गौतम ! भभूमि भ भूभिना समान यापत् શ્રુતમાં ઉપગવાળા
(सम्मदिट्ठी वा मिच्छद्दिट्ठि वा) सभ्यष्टि अथवाभिथ्याट (कण्हलेसे वा सुक्कलेसे वा) वेश्यावामा मय शुसवेश्यावा (णाणी वा अण्णाणी वा) ज्ञानी अथवा मज्ञानी (उक्कोससंकिलिट्ठ परिणामे वा असंकिलिटुपरिणामे वा) सवेश ५६२९ मवाणा अथवा मससेश परिम पाणा (तप्पाउागविसुज्झमाणपरिणामे वा) तत्प्रायोग्य तीन विशुद्धि यता ५२म पाणi.
(एरिसएणं गोयमा ! मणुसे उक्कोसकाल दुईयं आउयं कम्मं बधइ)-3 गौतम ! मे પ્રકારના મનુષ્ય ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિવાળા આયુકમને બંધ કરે છે.
(केरिसयाणं भंते ! माणुसी उक्कोसकालदिईयं आउयं कम्मं बंधइ)- भगवन् । ४२नी भानुषी ४७८ स्थितियाण आयुभन मधे छ ? (गोयमा ! कम्मभूमिया वा कम्मभूमगपलिभागी वा जाव सुत्तोवउत्ता)- गौतम ! म भूभिन्न 4241 भभूमिगत सभी यावत् श्रुतमा ७५यवाणी (सम्मदिदि सुक्कलेस्सा) सभ्यष्टि शुसवेश्यापाजी (तप्पाउग्गविमुज्झमाणपरिणामा) तप्रायोग्य 4शुद्ध यता मेपा ५२५ मवाणी (एरिसया णं गोयमा !
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫